एक और भडासी का निधन ? (अतीत के पन्ने से..........)

पिछले दिनों डॉ रुपेश के आत्महत्या या ह्त्या का पोस्ट पढ़ा, पढ़ते पढ़ते सब पर कमेंटियाने वाला ये जीव इस लेखनी पर टिपीयाने से इनकार कर गया संग ही विचारों की अंतर्द्वान्दता भी।



पहले हरे दादा की मौत फ़िर बारी पंडित जी की, और अब डॉ साहब।



इस असमय मौत के पीछे का राज, धुरंधर भडासियों के कालकलवित होने का रहस्य सच में रहस्य बनता जा रहा है, कारन जो भी हो मगर विचारों के भंवर में उलझा मैं अगले का इन्तेजार कर रहा हूँ, सम्भव है वो मैं ही होऊं, और अपने संभावित मौत की तैयारी भी मुझे ही तो करनी है, मगर विचार की अंतर्द्वान्दता की आख़िर ये असमय मोत का क्या कारण है, सम्भव है भूत बने रुपेश श्रीवास्तव इस पर प्रकाश डाल सकें,



वैसे भी अब भडास से जय भडास की परम्परा समाप्त प्राय है सो एक बार फ़िर से



जय जय भड़ास।

जय जय भड़ास।

2 comments:

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

यदा यदा हि भद्रजनस्य भड़ासस्य ग्लानिर्भवतु अग्नि: पुत्र!.....
नए अवतार में फिर जन्म हो गया और अब तो मजबूत किशोर हो चला है हमारा शिशु भड़ास और मुरदा हो चुका बनिया किसी तरह ममी में पट्टियां लपेट कर दुकान चलाने की कोशिश में लगा हुआ है। भड़ास भद्र जनों की आस है जो कि भदेस दर्शन पर टिकी रही है भद्रजन भलमनसाहत के कारण भ्रष्ट सिस्टम से टकराने में डरते हैं लेकिन भड़ासी नहीं तो उनका भड़ास से ही आस करना ही उचित है। हमारी मौत नहीं होती हम विचार हैं, जीवन का दर्शन हैं कोई आदमी नहीं है कि मर गया और कहानी खत्म हुई........ हम आफ़लाइन और आनलाइन दोनो तरफ़ सदैव जीवित रहेंगे।
जय जय भड़ास

पी.सी.गोदियाल said...

समय एक महान शिक्षक है, लेकिन दुर्भाग्य से यह अपने सभी शिष्यों को मारता है !

Never take life seriously. Nobody gets out alive anyway.

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