आज पहली बार किसी ऐसे मुद्दे पर लिखने की कोशिश करती हूं कि जो शायद मेरे जैसे लैंगिक विकलांग लोगो से संबंधित नहीं है । कल मैं रेड लाइट एरिया में वीकली रिपोर्ट क्लेक्ट करने गयी थी । हमारे डा. भाई के बार बार बोलने पर उनका दिया हुआ खादी का कुर्ता पैजामा पहन कर गयी । मुझे साड़ी पहनने की आदत है तो कुछ और पहनना अजीब लगता है । उधर जाने पर एक घटना हुई जो आप बड़ी-बड़ी बाते बताने वालों के लिये दिलचस्प न हो क्योंकि मैं दुनिया देश और समाज की बड़ी बातों के बारे में सोच ही नहीं पायी कभी भी । मेरे उधर पहुंचने पर एक छोटा बच्चा जो मुझे नहीं पहचानता था लेकिन सुन्दर सा भगवान बालगोपाल की तरह सा ,तो मैंने उसे गोद में उठा लिया और प्यार किया एक टाफ़ी भी दी खाने को तो अगले ही पल वह बच्चा मेरी गोद से कूद कर मां के पास भागा यह चिल्लाता हुआ कि मम्मी कोई बड़ा ग्राहक आया है । ये बात शाय्द पहले भी सुनी होगी पर ध्यान ही नहीं गया था लेकिन आज खादी के कुर्ते ने जहां मुझे यह बात सुनने के लिये कान दिये तो दूसरी ओर उस बच्चे को मेरे बारे में ऐसी सोच कि मैं कोई बड़ा ग्राहक हूं जो उसके लिये टाफ़ी भी लाया हूं । यह बच्चा कल बड़ा होकर परिवार,समाज और देश को क्या देगा आप बड़े मुद्दों पर बात करने वाले लोग सोचिये ,मैंने तो वो कपड़े ही समुन्दर की खाड़ी में फेंक दिये लेकिन उसकी सोच कैसे बदलूं उन कपड़ों के लिये.......................
नमस्ते ,जय भडास
3 comments:
मनीषा दीदी के इस अनुभव ने मुझे भी थोड़ा सा हिला दिया था लेकिन बदलाव तो आते आते ही आते हैं प्रयास पुरजोर जारी रखने चाहिये
जय जय भड़ास
baap re , aap ne kon say jamane ki bat kah di didi , kya is parkar ka behavior aaj bhi maujood hai , hum log 15 vi sadi may rah rahe hai
अमित दादा,मेरे अनुभवों में खाकी और खादी के इतने बुरे अनुभव हैं कि बताने में शर्म आती है। समस्या खाकी या खादी की नहीं बल्कि लोगों की नैतिकता की है। सामाजिक और राष्ट्रीय बदलाव से कहीं धीमी गति होती है नैतिक बदलाव की। विश्वास है कि एक न एक दिन हमारे भाईसाहब और रजनीश भइया के साथ ही सारे भड़ासियों के करे गये सच्चे प्रयास रंग लाएंगे
जय जय भड़ास
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