आई पी एल, आई सी एल और बी सी सी आई के बीच पिसता भारतीय क्रिकेट।
आई सी एल २००९ समाप्त हो चुका है और आई पी एल २००९ अपने चरम पर है। क्रिकेट भारतीय बाजार में बिकने वाला सबसे बड़ा आइटम बन चुका है सो सभी में इसे बेचने की होड़ है। कोई खिलाड़ी को खरीदता है कोई बेचता है, अगर कोई ना करे तो खिलाड़ी ख़ुद भी बिकने को तैयार है
धंधे के इस बाजार में छीटाकशी भी चरम पर है, राजनीति और राजनेता की तरह आरोप प्रत्यारोप के साथ दलाली भी गाहे बगाहे सामने आती रहती है। मगर इन सबके बावजूद हमारे देश के लोग क्रिकेट के प्रति पुरी तरह समर्पित हैं और चाहे कुछ भी हो जाए क्रिकेट को सर आंखों पर बिठा कर रखेंगे। मगर इस सबके बीच अगर कुछ छूटता जा रहा है तो वो है क्रिकेट के बाजार से आम किरकेटरों का नाता, राजनीति से क्रिकेट के दुनिया में फैली गंदगी और हमेशा की तरह नयी पौध का इस गंदगी पर बलि !!!
भारतीय क्रिकेट तिरंगे की छत्रछाया में खेला जाता है, खिलाडी भारत का प्रतिनिधि करते हैं और आम लोगों के बीच भी भारतीय होकर जाते हैं जहाँ ये लोगों के बीच आंखों के तारे बनते हैं तो इन का एक स्वतंत्र संस्था बी सी सी आई से कैसे कर सम्पादन हो सकता है जो भारत सरकार के निर्देशों, आदेशों और दायरों को मानने की बजाय अपनी स्वायत निर्देश की तरह कार्य करती है ?
संग ही क्रिकेट के प्रति तानाशाह नजरिया भी रखती है यानी की क्रिकेट को हिन्दोस्तानी के भावना पर बेचकर स्वहित और स्वलक्ष्य पर क्रिकेट और क्रिकेटरों के साथ क्रिकेट के भिष्मों की भी बलि !अब जरा आई पी एल और आई सी एल पर एक नजर.....
भारतीय क्रिकेट की आतंकी संस्था के अनुसार आई पी एल भारत और विश्व के लिए मानित और आई सी एल विद्रोही संस्था है कैसे ............
आई पी एल जिसकी स्थापना का मूल उदेश्य ही धंधा था, क्रिकेट को नीचा दिखाने के लिए एक मुहीम और क्रिकेट के नाम पर उगाहने का व्यवसाय। जिसके कर्ता धर्ता ललित मोदी एक व्यवसायी जो सिर्फ़ लाला जी होता है और क्रिकेट के नाम पर बिकने और बेचने वाले ऐसे लोग जिनका क्रिकेट से कोई सरोकार नही.....
बी सी सी आई की दोगली निति यहाँ भी कि जिस क्रिकेटर को शताब्दी का क्रिकेटर कहा उसे विद्रोही और बागी कहा गया और क्रिकेट को बेचने वाले दलाल क्रिकेट के ठेकेदार बन गए।
इस सबके बीच जो बाजारवाद देखने को मिला वो मीडिया से। पत्रकारिता और लोकतंत्र का चौथा पाया बनने वाला मीडिया क्रिकेट के नाम पर बी सी सी आई का दलाली करता नजर आया।
आई सी एल में प्रसारण पर बेरुखी ख़बर पर बेरुखी मगर आई पी एल एपी दलालों की तरह बाजार में बोली लगता भारतीय मीडिया। क्या मीडिया का ये अपराध अक्षम्य है? क्या आई सी एल में भारतीय नवीन पौध नही खेल रही, या आई सी एल भारतीय क्रिकेट का ठेकेदार और मीडिया इसका दलाल ?
जरा बी सी सी आई कि कारिस्तानी देखिये १९९३ श्यामल सिन्हा क्रिकेट (अंडर १६) जिस से धोनी निकल कर सामने आया.... जबकी रांची का प्रदर्शन निम्न स्तर पर था, पटना को पहली दौर में हराने वाली मधुबनी सेमी फाइनल में पहुँची, मगर जब स्टेट की टीम का गठन तो प्रथम दौर से बाहर होने वाले पटना और रांची से टीम बना लिया गया। छोटे स्तर की ये घटना उच्चतम स्तर तक है।
आज भी बिहार क्रिकेट एसोसिअशनकि मान्यता बी सी सी आई कि मोहताज है, तो क्या बिहार के खिलाड़ी विद्रोही हैं....बागी हैं?
क्रिकेट को बाजारवाद पर बलि चढाने वाले गैर क्रिकेटर अधिकारी, मीडिया और व्यवसायी पर नकेल कसने के लिए भारत सरकार को भारत के इस लोकप्रिय खेल की संस्था को अपने हाथ में लेना चाहिए और क्रिकेट के पार्टी समर्पित लोगों से इस का दिशा निर्देशन करवाना चाहिए। जब तक भारतीय क्रिकेट राजनेता और व्यवसायी के हाथों की कठपुतली रहेगा भारत के गाँव के क्रिकेट की पौध को ये लोग मीडिया के मदद से शव में तब्दील करते रहेंगे।
अनकही की मुहीम जारी है.........
5 comments:
your way of expression is very good, its very true, in India every system is corrupt but we have to make our own way to live.
सही लिखा है,
बाजार ने हमारे क्रिकेट के नि:संदेह नुक्सान पहुंचाया है.
बहुत खूब लिखा,
बगैर सरकार का स्वायत अधिशाषी होते हुए कोई भी संस्था कैसे किसी के प्रतिबंधित कर सकती है या प्रतिबन्ध हटा सकती है. सब कुछ गड़बड़ झाला है और राजनेताओं का वरदहस्त के साथ हस्तक्षेप भी.
लिखते रहिये
kamal kar dia apne to bahut steek alekh hai mai to kehti hoon aap ek chennel launch kar len taki ye sab baten logon aur sarkar tak pahunch saken bas yoon hi kehte rahen kabhi to koi sunega
आपकी सोच,आपकी भावनाएं...आपका लेखन प्रभावित करते हैं.लिखते रहें.शुभकामनाएं.
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