* खग्रास सूर्यग्रहण ( भारत में दृश्य ) - 22 , जुलाई , 2009 ई0 , बुधवार *
भूलोक में यह खग्रास सूर्यग्रहण भारतीय स्टैण्डर्ड टाइम के अनुसार प्रातः 5 घंटा 28 मिनट से प्रारंभ होकर प्रातः 10 घंटा 42 मिनट पर समाप्त हो जायेगा ।
( इस ग्रहण का सूतक सामान्यतः 21 जुलाई ,09 के सूर्यास्त से प्रारंभ हो स्पर्श काल से ठीक 12 घंटे पूर्व लगभग 17 घंटा 28 मिनट से प्रारंभ हो जायेगा । )
* खग्रास चंद्रग्रहण ( भारत में दृश्य ) - 31 दिसम्बर, 2009 ई. , गुरूवार *
भारत में खंडग्रास के रूप में 31 दिसम्बर , 2009 को रात्रि 12 बजकर 22 मिनट पर यह चन्द्र ग्रहण शुरू होकर रात्रि 1 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगा । भारत के सभी नगरों में इसे देखा जा सकेगा ।
( ग्रहण का सूतक 31 दिसम्बर , 2009 को ही दोपहर 3 बजकर 22 मिनट पर प्रारंभ हो जायेगा । )
* कंकन सूर्यग्रहण ( भारत में दृश्य ) - 15 जनवरी , 2010 ई. , शुक्रवार *
पृथ्वी पर भारतीय स्टैण्डर्ड टाइम के अनुसार यह ग्रहण सुबह 9 बजकर 35 मिनट से प्रारंभ होकर दोपहर 3 बजकर 38 मिनट पर समाप्त हो जायेगा ।
इस सूर्यग्रहण की कंकनाकृति भारत के दक्षिणी भागों - रामेश्वरम , कन्याकुमारी तथा तिरुवनंतपुरम ( केरल , तमिलनाडु के दक्षिणी भागों में ) आदि कुछ नगरों में ही दिखाई देगा , शेष सारे भारत में यह सूर्यग्रहण खंद्ग्राश रूप में ही दिखाई देगा ।
( इस ग्रहण का सूतक 14 जनवरी , 2010 की रात्रि लगभग 11 बजकर 58 मिनट से ही प्रारंभ हो जायेगा । )
* ग्रहण काल में कृत्य - अकृत्य *
ग्रहण काल में स्नान आदि करके इष्टदेव , भगवान् सूर्यदेव की पूजा , पाठ , पितृ-तर्पण ,वैदिक मंत्रों , आदित्यहृदय स्त्रोत , सुर्यश्टक स्त्रोत , गायत्री मंत्र आदि का पाठ करना चाहिए ।
ग्रहण काल में पहले से पकाया हुआ अन्न भी नहीं खाना चाहिए । नरकट ,दूध - दही , मट्ठा , घी का पका अन्न और मणि में रखा जल , तिल या कुश डालने पर अपवित्र नहीं होते और ना ही गंगा जल अपवित्र होता है ।
ग्रहण उपरांत अन्न , जल ,वस्त्र , फलों आदि का दान सुपात्र को देना चाहिए ।
अर्थात , ग्रहण काल में स्पर्श के समय स्नान , मध्य में होम और देव पूजन और ग्रहण मोक्ष के समय में श्राद्ध और अन्न , वस्त्र , धन आदि का दान एवं सर्वमुक्त होने पर स्नान करना चाहिए - यही क्रम है ।
- आचार्य रंजन (ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ ),बेगुसराय ,बिहार
2 comments:
देश के दिन ब दिन बिगड़ते हालात के साथ ही राजनैतिक व सामाजिक परिस्थितियों के लिये उपाय बताइये। जब इतने बड़े ग्रह-नक्षत्रादि पानी,फूल,मेवा आदि से मान जाते हैं तो हमारी छोटी सी धरती पर रहने वाले ब्रह्माण्ड के मुकाबले अस्तित्त्वहीन मनुष्यों की फितरत की क्या बिसात भला जो ज्योतिष जैसे शास्त्र के आगे लाइलाज रह जाए
जय जय भड़ास
आचार्य जी,
आपका प्रयास सार्थक हो,
सन्देश देने का कार्य जारी रखिये.
बधाई और शुभकामना.
जय जय भड़ास
Post a Comment