अभी सावधान न हुए तो आप और आपके बच्चे तड़प-तड़प कर मरेंगे

सारी दुनिया के लोग सोमालियाई लुटेरों के बारे में क्या सोचते हैं सबका अपना अपना नज़रिया होगा। कई बार इस बात पर भी विमर्श हुआ कि सोमालिया का ये हाल कैसे हुआ कि वहाँ के लोगों ने लूटपाट को ही जीविकोपार्जन का साधन बना लिया है। आप सब सोचेंगे कि ये तो शीर्षक से बिल्कुल अलग ही बात है लेकिन मेरे प्रियजनों साफ़ शब्दों में चेतावनी दे रहा हूँ कि यदि जिस तरह सोमालिया के लालची और तात्कालिक लाभ की बात सोचने वाले मौकापरस्त नेताओं ने देश की जनता के भविष्य के बारे में बिना विचार करे अपने देश में विकसित देशों को इलैक्ट्रॉनिक और रेडियोएक्टिव कचरा डालने का घूरा(डंपिंग यार्ड) बनाने की अनुमति दे दी थी ठीक वैसा ही हमारे देश में भी हो रहा है जिसका हालिया उदाहरण दिल्ली में भंगार वाले कबाड़ी की दुकान में रेडियोएक्टिव कोबाल्ट के पाए जाने से हुई दुर्घटना है। मीडिया ने इस साइंस फिक्शन की तरह से पेश करा और चुप्पी साध ली कोई नहीं जान पाएगा कि वह जानलेवा रेडियोएक्टिव पदार्थ किधर से आया था और जो पदार्थ परमाणु बिजलीघर में इस्तेमाल होता है वह कबाड़ी की दुकान में कैसे आ गया। समुद्र के रास्ते लाखों टन इस तरह का जहरीला कचरा हमारे देश की उर्वर उपजाऊ जमीन पर रोज़ाना ही लाया जा रहा है जिसमें से हमारे गरीब लोग जान खतरे में डाल कर जला या तेज़ाब आदि दूसरे तरीकों से जो उपयोगी पदार्थ अलग करते हैं वह मात्र उस कचरे का 5% -7% ही रहता है शेष बचा हुआ जहर हमारी उपजाऊ जमीन में यहाँ-वहाँ बिखर जाता है जो कि आने वाले समय में विभिन्न जैनेटिक लाइलाज बीमारियों का कारण बनेगा(और बनना शुरू भी हो चुका है अंग-भंग बच्चों का पैदा होना,मानसिक विकलाँगता,जुड़वा बच्चों के नाम पर आधे-अधूरे दो बच्चों का जुड़े हुए पैदा होना,पशुओं का विकृत रूप में जन्म लेना आदि इसके ज्वलंत उदाहरण हैं)। सारी जमीन बंजर हो जाएगी क्योंकि रेडियोधर्मिता का प्रभाव बहुत दूर और देर तक रहने वाला होता है। हमारे देश की जनता न लाइलाज बीमारियों से तड़्प कर मरेगी बल्कि आने वाली पीढ़ियाँ भी रोगग्रस्त पैदा होंगी। आपके बच्चे आपके सामने तड़पेंगे और उनका कोई इलाज न हो पाएगा। हमारे बेहद कमीने किस्म के नेता इस रहस्य को भली प्रकार से समझते हैं लेकिन उन्हें क्या वे तो अमेरिका या स्विटजर लैंड में बस जाएंगे लूट खसोट करने के बाद मरना होगा आम आदमी को जिसका भविष्य कचरा जला कर धुँआ उगलती चिमनियाँ निगल रही हैं। अब भी समय है कि यदि आप नहीं जागे और सरकारों की इस आत्मघाती नीति का विरोध न करा तो तैयार हो जाइये तड़प-तड़प कर मरने के लिये।
जय जय भड़ास

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