बचे-खुचे सब गांधीवादी...


कहते थे, मैं उड़ूं गगन में...

और काट लिए तुमने ही पर।


बेखौफ में रहता कैसे बताओ?

कुछ ज्यादा था अपनों से डर।

लगी बोझ जब मां को बिटिया...

करी विदा हाथ पीले कर।


न मिली नौकरी बाप ने झिड़का...

निकल निकम्मे, कुछ भी कर।


बचे-खुचे सब गांधीवादी...

क्यों नहीं जाते शर्म से मर।


अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'

3 comments:

अजय मोहन said...

आग है भाई एक दम पैट्रोल लिखावट है
जय जय भड़ास

फ़रहीन नाज़ said...

आप लोग इतनी गहरी बातें लिख देते हैं कि चार-चार दिन तक भेजा घूमा रहता है
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

अमिताभ भाई,
सच को इस आसानी से कह गए की अब ये पाच नही रहा.
बस सच कहते रहिये,
बढिया और सटीक लिखा है.
जय जय भड़ास

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