अमेरिका में बराक ओबामा क्या जीते, पुरी दुनिया में ही बदलाव-बदलाव की हवा चलने लगी! ऐसा लगा मानो सब कुछ माउस के क्लिक की तरह बदल जाएगा। हमारे देश में भी बदलाव की सुगबुगाहट सेलावन भरी ठंडी हवा के झोंकों की तरह बहने लगी। क्या नेता, क्या विक्रेता, सब बदले- बदले से नज़र आने लगे । अब ये आनेवाले चुनाव की हुँकार है या बदलाव की बयार या खालिश मंदी की मार ये तो ऊपर वाला ही जनता होगा। मगर एक बात दिख रहा है की इंडियन मीडिया से लेकर माडर्न बीबियाँ तक सब के सब बदलाव की बयार में बहे जा रहे हैं। इसी बदलाव-बदलाव में मेरा पत्रकार मन भी बदल गया। मैंने अपने मालिकों से बोला की सर अब मैं बदल गया हूँ । अब मैं रहिस नेताओं की जगह गरीब, फटेहाल, ग्रामीण, किसान , मजदूर और समाज के दबे - कुचले लोगों को कवर करूँगा। मेरे मालिकों को भी मेरा ये बदलाव कुछ रास आया , उन्होंने कहा जाओ और अपनी कलम चलाओ । मैं वहां पहुँच गया जहाँ अभी कुछ दिन पहले ही एक रास्ट्रीय चेहरे को कवर करने रास्ट्रीय मीडिया के नुमैन्दे पहुंचे हुआ थे। सच देखिये अब वहां सब कुछ पटरी पर है। वही रोज-मर्रा की पुरानी जिंदगी! तडके उठाना , फावडा लिए खेतों में सूरज ढलने तक पसीना बहाना, दिन भर खेतों की मिटटी में जीवन का मर्म ढूँढना और शाम होते ही रुखा-सुखा खाकर निढाल हुए सो जाना। कही कोई बदलाव नही! कोई परिवर्तन नही! खैर छोडिये ये सब तो होता रहता है। इसी गाँव के प्रिमरी स्कूल के मास्टर से मैंने इंटरव्यू सुरु किया। मैंने पूछा- सर आप अमेरिका में हुए बदलाव को किस सन्दर्भ में देखते हैं?
टीचर ने जबाब दिया- देखिये अमेरिका में पढ़े-लिखे, खाए -पिए लोग हैं। पर हमारे यहाँ या तो बस अघाये या फिर एकदम भूखे-नंगे ! यहाँ पर कुछ नही होने वाला है।
मैंने अगला प्रश्न दागा- क्या आप बदलाव नही चाहते?
मेरा इतना पूछन था की मास्टर जी नाराज हो गए और बोले- वी मस्ट नीड बहकाव ! बदलाव बिल्कुल नही! क्यूंकि हम बहकाव चाहते हैं की सरकार जो ५० सालों में नही कर सकी वह सिर्फ़ ५ सालों में कर देगी। हम बहकाव चाहते हैं की आनेवाले ५ सालों में हम टेर्रोरिस्म को ख़त्म कर देंगे। हम बहकाव चाहते हैं की ५ सालों में किसी गरीब की गिरेबान नही पकड़ी जायेगी। हम बहकाव चाहते हैं की हर दलित दौलतमंद हो जाएगा। हम बहकाव चाहते हैं की हर मजदूर अब मर्सिडीज में घूमेगा। हम बहकाव चाहते हैं की आने वाले ५ सालों में हर शहर सुरक्षित हो जाएगा। हम बहकाव चाहते हैं की हर गावं अब ग्लोबल हो जाएगा। हम बहकाव चाहते हैं की आने वाले ५ सालों में हर किसान कुर्सी पर बैठना सिख जाएगा। पत्रकार महोदय हमें बहकाव की आदत पड़ चुकी है, हर पांच साल में हमें बहकाव का पुरा डोज दिया जाता है। हम इसी में खुश हैं आजकल के विज्ञापनों में देखिये हम कितना मुस्कुरा रहे हैं। सर हमें बदलाव बिल्कुल नही चाहिए हम तो बस बहकाव में ही मस्त हैं। बेकाज बहकाव वी मस्ट नीड .....(मैं तो सोचने पर मजबूर हूँ और आप?)
जय भड़ास जय जय भड़ास
4 comments:
wah manoj jee badlaav ke badle bahkaav wala naya angle samjhaane ke liye shukriya, andaje bayan achha hai likhte rahein.
jabardast presentation thi aur mudda bhi badhiya. vakayi ham ek baar fir bahakne ke liye tayar hai.
मनोज भाई आपने सचमुच गहराई से एक गम्भीर मुद्दे को सामने लाया है। व्यंग ही एकमात्र उपाय बचा है इस तरह की गम्भीर बातों को कुरेदने का वरना लोग तो सचमुच बहके हुए ही हैं। लेकिन प्राइमरी के मास्साब को पात्र बना लेने से क्या पता कि आपसे एक वेद ज्यादा धारण करने वाले "प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर" के नाम से जुड़े भड़ासी भाई नाराज न हो जाएं ये ध्यान रखियेगा कि अग्रिम माफ़ीनामा तैयार रखें।
बहुत खूब भइये धुंआधार लिखा है एकदम भड़ास के अनुकूल है
जय जय भड़ास
मेरे आने वाले शब्द पहले से अजय मोहन जी लिख चुके है ,
मै उन से पूर्ण रूप से सहमत हु /
इस लेख के लिए आप को गूगल बाबा का आशीर्वाद मिले ...........:)
Post a Comment