अभी ब्लाग पर एक लेख देखा अमिताभ की निंदा करते हुए आस्कर की महानता का बखान किया गया था। आस्कर जीतना अच्छा है पंरतु उसकी आड़ में भारतीय फिल्मों और फिल्मकारों पर टिप्पणी...
लिखा है हम ओलंपिक में स्वर्ण और फिल्मों में आस्कर के लिये तरसते हैं। तो अब आस्कर हमारी फिल्मों की महानता का पैमाना हो गयी अगर आस्कर नहीं मिलेगा तो भारतीय फिल्में स्तरहीन होंगी। और जहां तक ओलपिंक में गोल्ड मैडल की बात है तो वहां सबके लिये बराबर का मौका होता है अगर आप अपने प्रदर्शन के बल पर विपक्षी से आगे निकल गये तो गोल्ड पक्का। परंतु क्या आस्कर में ऐसा होता है? लगान भी गयी थी आस्कर में? मदर इंडिया भी और तारे जमीन पर भी । पर हुआ क्या। और मिला आस्कर किन फिल्मों को गांधी को क्योंकि बनायी विदेशी ने‚ स्लमडाग को। अब आप खुद ही पैमाना समझ लीजिये आस्कर जीतने का। और माफ कीजिये ओलंपिक में गोल्ड के लिये यह देश तरसता हो परंतु आस्कर के लिये कुछ गिने–चुने फिल्मकार या कुछ और लोग। ओलपिंक को भी काफी वर्ष हो गये और जब हमने बेहतर किया तो गोल्ड मिला हाकी उदाहरण है परंतु आस्कर के लिये भी काफी वर्ष हो गये तो क्या इतने वर्षों में हमारे फिल्मकार एक भी बेहतर फिल्म नहीं बना पाये कि वह आस्कर की एक भी केटेगिरी में जगह नहीं बना पायी। अगर आप नोबल पुरस्कार की बात करते तो माना जा सकता था परंतु आस्कर‚ न भी मिले तो क्या फर्क पड़ता है आखिर अब हमारे यहां ही बहुत सारे पुरस्कार दिये जा रहे हैं और रही पैसा कमाने की बात तो पूरी दुनिया में भारतीय फिल्में रिलीज हो रही हैं और दर्शकों से अपना लोहा मनवा रही हैं। और अमिताभ उनकी आलोचना की जा सकती है परंतु निंदा। अफसोस है।
2 comments:
apke vicharon se sahmati hai.
कठैत जी बिलकुल सहमति है आपने उस ब्लाग के बारे में नहीं लिखा जिधर की ये चर्चा है जरा भड़ासी भी झांक आते...
जय जय भड़ास
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