कहते थे, मैं उड़ूं गगन में...
और काट लिए तुमने ही पर।
बेखौफ में रहता कैसे बताओ?
कुछ ज्यादा था अपनों से डर।
लगी बोझ जब मां को बिटिया...
करी विदा हाथ पीले कर।
न मिली नौकरी बाप ने झिड़का...
निकल निकम्मे, कुछ भी कर।
बचे-खुचे सब गांधीवादी...
क्यों नहीं जाते शर्म से मर।
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
आग है भाई एक दम पैट्रोल लिखावट है
ReplyDeleteजय जय भड़ास
आप लोग इतनी गहरी बातें लिख देते हैं कि चार-चार दिन तक भेजा घूमा रहता है
ReplyDeleteजय जय भड़ास
अमिताभ भाई,
ReplyDeleteसच को इस आसानी से कह गए की अब ये पाच नही रहा.
बस सच कहते रहिये,
बढिया और सटीक लिखा है.
जय जय भड़ास