किसी की मौत, किसी की जिन्दगी,
किसी के गम किसी के आंसू,
कहीं भावों का भवंर तो कहीं जीवन का सफ़र.
सब से इतर
मीडिया के लिए एक खबर.
निरुपमा की मौत या ह्त्या
मीडिया ने देखा अपना बाजार....
लगाई छलांग....
बनना था समाज का ठेकेदार.....
उठा लिया बीड़ा.......
उस बाप का क्या.....
उस माँ का क्या.......
जिसकी बिन ब्याही बेटी पेट से हो,
समाज के बंधन सभी तोड़ने को आतुर मगर,
जब बात अपने पे आती तो सभी मूक बघिर बन जाते...
निरुपमा को मरना ही था,
या तो खुद को मारना था या...
अपने उन बूढे माँ बाप को.....
बागबान देखने वालों ने सिनेमा हाल में जम कर आंसू बहाए,
आंसुओं के कतरे की हकीकत यहाँ नजर आयी....
जब बंधन ही नहीं निभाना,
समाज के लिए ना कोई पैमाना,
तो भला क्यूँ कर रिश्तों के बंधन में अटकते हो,
तोड़ दो समाज के पैमाने को,
रिश्तों की दुहाई को,
निरुपमा तुम ना रही,
तुम्हें रहने का हक़ भी नहीं था,
तुम्हारे साथ क्या हुआ...
इसके लिए भी,
तुम्हारे मरने के बाद
तुम्हारे शव को बेचने के लिए,
तुम्हारे ही मीडिया वाले सामने आ गये,
तुम्हारे शव को बेच रहें हैं,
और तुम्हारे माँ बाप को जलील कर रहे हैं,
तुम्हारे जीवन से इतर मरना भी तुम्हारे माँ बाप के लिए दुश्वार है,
निरुपमा तुमने जन्म ही क्यूँ लिया,
ये मौत का बाजार है.
मीडिया की गुनगुनाती शाम.
मौत के बाजार में मीडिया का मधुर संगीत बज रहा है.
----रजनीश के झा----
11 comments:
एक कटु सत्य।
मार्मिक!
बहुत सटीक लिखा है आपने ....
How selfish the whole universe is !
वाह रजनीश जी . क्या करें इस एकांगी सोच वाले काने मीडिया को. यह बिकुल सही है कि मौत तो विरलतम स्थित में ही दी जाने वाली सज़ा है. हत्या या आत्महत्या किसी मर्ज़ की दावा नही. लेकिन हम जिस समाज में रहते हैं उसके कायदे क़ानून खास कर पिता और माता , भाई बंधू इस नज़रिए से भी चीज़ों को देखे जाने की भी ज़रूरत तो है ही...! क्या मार्मिक लिखा है आपने.
पंकज झा.
सबसे बड़ी बात ये कि इस पूरे घटनाक्रम में वह लड़का कहाँ लापता है सर...वो क्यूं नहीं सामने आ कर अपनी बात रख रहा है? क्या उसको यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि वह अपनी बहन के साथ ऐसा व्यवहार किया जाना पसंद करता?
media ki bedili aur bedimagi par to kya kaha jaye,ye to bas ek bazar hai.par anupama ka jeevan ya mout bekar nahi jayegi,kai ladkiya isase sabak lengi aur kai maa-bap rishte ki jimmedari ko samajhenge.
bahut sunder rachana hai.
Kisi bhi pariwar k liye yeh ek duhaswapn ho sakta hai ki binbyahi beti maan bane. Padhi likhi nai peedhi ki bhi zimmedari hai ki is avsaad se pariwar ko ru-baru na karwae. Maut is masle ka hal qatai nahi thi... pata nahi aadhi-adhuri adhunikta kahan le ja kar khada karegi hame.
मानवीय संबेदनाओं को दिखाती उम्दा प्रस्तुती !!!! विचारणीय रचना !!!!!
प्रिये रजनीश भाई बहुत ही सुंदर भाषा में आपने एक पिता के दर्द को उकेरा है.
बहुत बहुत धन्यबाद
अभी अभी मैं अविनाश जी के मोहल्ला से आया हूँ . ओ तो गुंडागर्दी का अखारा खोल रखा है, लग ही नहीं रहा किसी पढ़े लिखे का ब्लॉग हो. लगता है जैसे शहाबुद्दीन, पप्पू यादव का का अखारा हो. और अविनाश जी का कम रह गया हो उलटी सीधी खबर छापना और दस - पांच लठैतों को लेकर फिरौती वसूलना .
कृपया आप ब्लोगर से निवेदन है, अविनाश जी की शहाबुद्दीन और पप्पू यादव टाइप लेखन का विरोध करें .
धन्यबाद
विजय झा
कटु सत्य बहुत सटीक लिखा । मीडिया की कार्यप्रणाली पर अफसोस होता है। उनके लिये हर चीज़ बिकाऊ है किसी के दुःख या अन्य किसी मुद्दे से उन्हें क्या।
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