आज जिस तरह से मीडिया ने सरकारी भोंपू बन कर लोकल ट्रेन के चालकों(मोटरमैन) की माँगों के संदर्भ में समाचारों को मरोड़ा है उसे देख कर अंदाज लग जाता है कि कौन सा न्यूज चैनल किसकी दी रोटी खा रहा है। इन चालकों ने महीनों से मुंबई की मतलब परस्त, निर्दयी और आत्मकेन्द्रित जनता को अपनी समस्याओं के बारे में बता रखा था लेकिन मुंबई में रह रहे स्वार्थी और आत्मकेन्द्रित लोगों को इस बात की परवाह कहां है ये तो आई पी एल मैच देख रहे थे। सरकारी भोंपू बने चैनल बता रहे थे कि ये मामला वेतन विसंगतियों का है यानि कि मोटरमैन अधिक पगार माँग रहे हैं जबकि किसी ने नहीं बताया कि ये मामला सुरक्षा से भी जुड़ा है और रोजगार के अवसरों पर सर्प की तरह कुंडली मार कर बैठी सरकारों की सोच को ललकारने का भी है। सारे सरकारी भोंपू बता रहे थे कि चालक काम करने से इन्कार कर रहे हैं और इस कारण स्वार्थी जनता भी उन्हें कोस रही थी जबकि ये सरासर झूठ है किसी चालक ने काम से इन्कार नहीं करा बल्कि भूखे रह कर काम करा ये किसी फूटी आँख के यात्री को नहीं दिखा क्योंकि उन्हें इस बात से क्या मतलब उन्हें तो बस यात्रा करनी है। अव्वल दर्जे के कमीने सिद्ध हुए मुंबईकर इस हड़ताल के संदर्भ में। जो मोटरमैन उनकी सुरक्षा को लेकर लड़ रहे थे उन्ही को मारा पीटा गया। सरकार ने इन चालकों को पकड़ कर पुलिस वैन में इस तरह ठूंस दिया जैसे वे डकैती या बलात्कार के मुजरिम हों। जहाँ एक ओर हमारी सरकार अजमल कसाब को दामाद बना कर उस पर करोड़ों रुपया खर्च कर देती है दूसरी ओर अपने ही नागरिकों पर खुल कर अत्याचार करने से नहीं चूकती।
भड़ासियों ने इन सारी बातों को जाना समझा और भूखे पेट रह कर काम करने वाले मोटरमैनों से मुलाकात भी करी साथ ही उनकी हर बात को सुना और समझा और इस नतीजे पर आए कि उन्होंने जो करा वो जायज़ था लेकिन बदकिस्मती से अब तक लोग उनकी समस्याओं को अपने स्वार्थ के चलते नहीं समझ रहे हैं।
जय जय भड़ास
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