लो क सं घ र्ष !: रसधार नही जीवन में...

रसधार नही जीवन में ,
है निर्बल वाणी कहती।
अनुरक्ति यहाँ छलना है
मन आहात करती रहती॥

मृदुला में कटुता भर दी,
कटुता में भर दी ज्वाला।
वेदना विहंस बाहों की
दे डाल गले में माला॥

है बीच भंवर में चक्रित,
नैया कातर मांझी है।
काल अन्त निर्मम वियोग
वेदना विकल आंधी है॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 comment:

shama said...

बेहद सशक्त अभिव्यक्ति है !
शमा

Post a Comment