राजनैतिक एँव समसामयिक विषयों पर बातें कहाँ तक हों, आइये कुछ गंभीर विषयों पर सैधांतिक चर्चा भी करें। आध्यात्मिकता, नैतिकता एवं धार्मिकता पर आज कल के नौजवान, जो ‘‘ईट, ड्रिंक एण्ड बी मेरी‘‘ पर विश्वास रखते हैं, नाक भौं सिकोड़ते हैं, सोचने की बात है कि मौज-मस्ती शराब, जुआ, मारफिया का सेवन, नाचगाना एवं धूम्रपान आदि चाहे ऐसा आता है जब इन में लिप्त व्यक्ति अपने को संतुष्ट महसूस कर सके ?
शायर ग़ालिब चाहे जितने बड़े दार्शनिक हों, उन्हों नें अपने कृत्यों के शायद बचाव के लिये ही ये शेर कहा होगा।
अगले वक़तो के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो जो मय व नग़मा को अन्दोह रूबा कहते हैं उन्होंनें शराब व संगीत को बर्बाद करने वाली चीजें नहीं माना, उल्टे पुराने लोगों की हंसी उड़ाई। नौजवान वर्ग नें इस ‘लाजिक‘ को ‘बक-अप‘ भी खूब किया, लेकिन मज़हब नें इन चीजों पर जो पाबंदी लगाई आप उसका चाहे जितना मजा़क उड़ाये, ज़माना बदलने से बहुत सी बुनियादी वास्तविकतायें कभी नहीं बदलती। कोई भी समझदार व्यक्ति नशे में कही गई ग़ालिब की इस भड़काऊ बात से सहमत नहीं हो सकता, हाँ शेर के अन्दाज़ को पसंद कर सकता है।
अब रही बात धर्म की, उसका जा़हिरी रूप इतना विकृत है, और उसमें आडम्बरों को इतना सम्मान दे दिया कि इसकी आत्मा पूरी तरह ओझल हो गई। जो व्यक्ति इसका वर्तमान चेहरा देखता है, वह या तो इससे नफ़रत करता है या इसी रंग में रंग जाता है। कुछ दशिनिकों ने इसे ‘अफ़ीन‘ हैं, जिनके नशे में नौजवान वर्ग खूब मस्त है।
समाज में दिखाने के धर्म और मूल धर्म जिसमें आहयामिकता एँव नैतिकता समाहित है, इन दोनों में अन्तर न कर पाने के कारण धर्म आधारित जो भी बात होती है उसको पढ़ालिखा कह कर नकार देता है, इस प्रतिक्रिया में उसके आधुनिकता के नशे का भी प्रभाव होता है जो पश्चिम से उस तक पहुँचा है।
धूम्रपान की मिसाल ही लीजिये, धर्म जब इसे निषिघ्द करते हैं तो इस पर कोई तवज्जो नहीं देता लेकिन जब इससे डाक्टर स्वास्थ के अधार पर रोकते हैं, या पंजाब में सिख लड़केे इस कि खिलाफ़ आन्दोलन चलाते हैं, या सिगरेट एँव पाउच पर सावधानी लिख दी जाती है ता वैज्ञानिक सलाह की कोई आलोचना नहीं करता भले उसके आधार पर आचारण में परिवर्तन हो या न हो।
शराब अगर बुरी न समझी जाती तो मद्य निषेध विभाग की कोई आवश्यकता ही न रहती। अब ‘खुमार‘ का ये शेर कहाँ तक प्रासंगिक है, आप खुद सोचिये, बहैसियत साहित्यक खूबी के मुझे भी पसंद है।
अब शराब व नाच गाने पर मुर्शरफ़ की खबर अभी अभी अखबारों में छपी है। सभी धर्मो, मुख्य रूप से इस्लाम में यह बातें पूर्णतयः वर्जित हैं। एक इस्लाम का दम्म मरने वाला तथा इस्लामिक देश का पूर्ण रहनुमा यह हरकतें करेगा, कम से कम इस्लामी दुनिया का सर इन बातों से ज़रूर झुकेगा। पूरी बात आप नें देखी सन्दर्भ हेतु मैं यहाँ इसका उल्लेख करूँगा-शीर्षक यह छपा है- ‘‘खूब नाचे परवेज‘‘ वह अमेरिका के एक रेस्तराँ में ज़ोरदार ठुमके लगाते देखे गये, उनके सिर पर जाम था, लेकिन मजाल थी कि मुशर्रफ़ के ठुमकों से कोई बूंद छलक जाती।
वाशिंगटन में अमेरिका नें जो परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन अप्रेल 10 के दूसरे सप्ताह में आयोजित किया, उसमें शरीक होकर स्वदेश वापसी से पूर्व हमारे प्रधानमंत्री ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया, ब्रिक (ब्रिक) सम्मेलन मुर्शरफ नें सेना हयक्ष या पाकिस्तानी प्रशासक के तौर पर चाहे जितने तमगे़ बटोरे हों ़-उन्होंने अपने स्र्वाथ में पाकिस्तान को नीचा दिखाने में कोई ओर कसर नहीं छोड़ी, मुल्क को अमरिका के हाथों गिरवा रक्खा, कैरगिंल काण्ड द्वारा भारत को धोकर दिया, नवाज़ शरीफ़, बेनज़ीर और इफ़़तरवार चैधरी को खूब नाच नचाया, अब खुद भी नाचे नाचे फिर रहे हैं।
इस नाचने को अगर ग़लत न समभल जाता तो मेडिया में तिरस्कार के नहीं बल्कि गर्व के अन्दाज़ में यह ख़बर छापी जाती।
समाज-सुधारक या धर्म या इस्लाम धर्म विलासिता, नाच गाने या शराब के विरूद्ध जब अपनी आवाज़ उठाते हैं तो बहुत से लोग आधुनिकता के दबाव में इन बातों या उपदेशों की आलोचना यह कह कर करते हैं कि ये बातें हमारी आज़ादी पर अकुश लगाती हैं। परन्तु जब समाज के विद्धान यह कहते है कि अत्यधिक विलासिता, नृत्य एवं संगीत या स्वतंत्र यौन-क्रियामें आप को गहरी खाइयें में ढकेल देंगी या जब डाक्टर यह कहता है कि शराब पीना छोड़ दीजिये इससे आप का स्वास्थ्य या फेफडे़ ख़राब हुए जा रहे हैं तब इन बातों को हम हयान से सुनते हैं, और यदि इन पर अमल नहीं करते है तो बहुत जल्द ख़मियाज़ा भी भुगतते हैं। अतः धर्म यदि कुछ कहे-शर्त यह हैं कि वह पाखण्ड के तहत न हो, और वह बातें नैतिकता या आहयानिकता को बढ़ावा देने वाली हों तो उन से भडकना नहीं चाहिये। नशे के बारे में ग़ालिब का शेर आप ने सुना, अब इक़बाल का भी सुन लीजिये-
शायर ग़ालिब चाहे जितने बड़े दार्शनिक हों, उन्हों नें अपने कृत्यों के शायद बचाव के लिये ही ये शेर कहा होगा।
अगले वक़तो के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो जो मय व नग़मा को अन्दोह रूबा कहते हैं उन्होंनें शराब व संगीत को बर्बाद करने वाली चीजें नहीं माना, उल्टे पुराने लोगों की हंसी उड़ाई। नौजवान वर्ग नें इस ‘लाजिक‘ को ‘बक-अप‘ भी खूब किया, लेकिन मज़हब नें इन चीजों पर जो पाबंदी लगाई आप उसका चाहे जितना मजा़क उड़ाये, ज़माना बदलने से बहुत सी बुनियादी वास्तविकतायें कभी नहीं बदलती। कोई भी समझदार व्यक्ति नशे में कही गई ग़ालिब की इस भड़काऊ बात से सहमत नहीं हो सकता, हाँ शेर के अन्दाज़ को पसंद कर सकता है।
अब रही बात धर्म की, उसका जा़हिरी रूप इतना विकृत है, और उसमें आडम्बरों को इतना सम्मान दे दिया कि इसकी आत्मा पूरी तरह ओझल हो गई। जो व्यक्ति इसका वर्तमान चेहरा देखता है, वह या तो इससे नफ़रत करता है या इसी रंग में रंग जाता है। कुछ दशिनिकों ने इसे ‘अफ़ीन‘ हैं, जिनके नशे में नौजवान वर्ग खूब मस्त है।
समाज में दिखाने के धर्म और मूल धर्म जिसमें आहयामिकता एँव नैतिकता समाहित है, इन दोनों में अन्तर न कर पाने के कारण धर्म आधारित जो भी बात होती है उसको पढ़ालिखा कह कर नकार देता है, इस प्रतिक्रिया में उसके आधुनिकता के नशे का भी प्रभाव होता है जो पश्चिम से उस तक पहुँचा है।
धूम्रपान की मिसाल ही लीजिये, धर्म जब इसे निषिघ्द करते हैं तो इस पर कोई तवज्जो नहीं देता लेकिन जब इससे डाक्टर स्वास्थ के अधार पर रोकते हैं, या पंजाब में सिख लड़केे इस कि खिलाफ़ आन्दोलन चलाते हैं, या सिगरेट एँव पाउच पर सावधानी लिख दी जाती है ता वैज्ञानिक सलाह की कोई आलोचना नहीं करता भले उसके आधार पर आचारण में परिवर्तन हो या न हो।
शराब अगर बुरी न समझी जाती तो मद्य निषेध विभाग की कोई आवश्यकता ही न रहती। अब ‘खुमार‘ का ये शेर कहाँ तक प्रासंगिक है, आप खुद सोचिये, बहैसियत साहित्यक खूबी के मुझे भी पसंद है।
शेख़, सुनी सुनाई पर आप यकी़न न लाइये
मय है हराम या हलाल, पी कर ज़रा बताइये।
अब जुए और सट्टेबाजी़ पर नज़र डालिये, जिसमें गारिब अपनी सम्पति खोते हैं, और धनी इनका शोषण करके और मोटे होते जाते है, ग़रीब की ज़मीन, छप्पर, गहने यहाँ तक कि बीबी तक बिक जाती है। सट्टे में आई0पी0एल0 तथा बी0सी0आई0 की कहानी अभी ताजी़ है, सुनन्दा नें मुफ़त में 70 करोड़ मारे, ललित मोदी, थुरूर या अन्य बड़ों ने क्या किया, यह भी सभी को आभास है। बेचारे क्रिकेट प्रेमी अपनी पेब कटवाते हैं।मय है हराम या हलाल, पी कर ज़रा बताइये।
अब शराब व नाच गाने पर मुर्शरफ़ की खबर अभी अभी अखबारों में छपी है। सभी धर्मो, मुख्य रूप से इस्लाम में यह बातें पूर्णतयः वर्जित हैं। एक इस्लाम का दम्म मरने वाला तथा इस्लामिक देश का पूर्ण रहनुमा यह हरकतें करेगा, कम से कम इस्लामी दुनिया का सर इन बातों से ज़रूर झुकेगा। पूरी बात आप नें देखी सन्दर्भ हेतु मैं यहाँ इसका उल्लेख करूँगा-शीर्षक यह छपा है- ‘‘खूब नाचे परवेज‘‘ वह अमेरिका के एक रेस्तराँ में ज़ोरदार ठुमके लगाते देखे गये, उनके सिर पर जाम था, लेकिन मजाल थी कि मुशर्रफ़ के ठुमकों से कोई बूंद छलक जाती।
वाशिंगटन में अमेरिका नें जो परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन अप्रेल 10 के दूसरे सप्ताह में आयोजित किया, उसमें शरीक होकर स्वदेश वापसी से पूर्व हमारे प्रधानमंत्री ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया, ब्रिक (ब्रिक) सम्मेलन मुर्शरफ नें सेना हयक्ष या पाकिस्तानी प्रशासक के तौर पर चाहे जितने तमगे़ बटोरे हों ़-उन्होंने अपने स्र्वाथ में पाकिस्तान को नीचा दिखाने में कोई ओर कसर नहीं छोड़ी, मुल्क को अमरिका के हाथों गिरवा रक्खा, कैरगिंल काण्ड द्वारा भारत को धोकर दिया, नवाज़ शरीफ़, बेनज़ीर और इफ़़तरवार चैधरी को खूब नाच नचाया, अब खुद भी नाचे नाचे फिर रहे हैं।
इस नाचने को अगर ग़लत न समभल जाता तो मेडिया में तिरस्कार के नहीं बल्कि गर्व के अन्दाज़ में यह ख़बर छापी जाती।
समाज-सुधारक या धर्म या इस्लाम धर्म विलासिता, नाच गाने या शराब के विरूद्ध जब अपनी आवाज़ उठाते हैं तो बहुत से लोग आधुनिकता के दबाव में इन बातों या उपदेशों की आलोचना यह कह कर करते हैं कि ये बातें हमारी आज़ादी पर अकुश लगाती हैं। परन्तु जब समाज के विद्धान यह कहते है कि अत्यधिक विलासिता, नृत्य एवं संगीत या स्वतंत्र यौन-क्रियामें आप को गहरी खाइयें में ढकेल देंगी या जब डाक्टर यह कहता है कि शराब पीना छोड़ दीजिये इससे आप का स्वास्थ्य या फेफडे़ ख़राब हुए जा रहे हैं तब इन बातों को हम हयान से सुनते हैं, और यदि इन पर अमल नहीं करते है तो बहुत जल्द ख़मियाज़ा भी भुगतते हैं। अतः धर्म यदि कुछ कहे-शर्त यह हैं कि वह पाखण्ड के तहत न हो, और वह बातें नैतिकता या आहयानिकता को बढ़ावा देने वाली हों तो उन से भडकना नहीं चाहिये। नशे के बारे में ग़ालिब का शेर आप ने सुना, अब इक़बाल का भी सुन लीजिये-
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है।
मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।
मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।
-डा0 एस0 एम0 हैदर
1 comment:
IS LEKH KA KYA MATALAB HAI????????????? MUJHE NAHI LAGTA KI 100 KARODA SE JYADA HINDUSTANI APKE LIYE MISHAL YOGYA NAHI LAGE? NIRTHAK ADAMI KI NIRTHAK BAT BATAKAR KYA SANDESH DENA CHAHTE..YAHA HAJARO PARVEJ ROJ PIKAR TULL HO RAHE HAI UNHE BHI DEKHIYE..
Post a Comment