मैं मानता हूं कि दैवीय और राक्षसी प्रव्रत्ति का मिश्रण ही तो है मनुष्य.....

आत्मन अनूप मंडल से करबद्ध निवेदन है कि अमित जी ने आपके समक्ष जो बातें रखी हैं उन्हें व्यवहारिक तरीके से यदि सामने लायी जाएं तो ये एक अत्युत्तम विकल्प है। आप इस बात का स्पष्टीकरण अवश्य करें कि आपने जिन शब्दों के आपत्तिजनक अर्थ बताए हैं उनका आधार कौन सा शब्दकोश है और किसने लिखा व कहां से प्रकाशित हुआ है। यदि आपके अनुसार जैन फेरबदल करवाने में माहिर हैं और शब्दकोशों के शब्दों में हेराफेरी कर देते हैं तो इस बारे में ठोस प्रमाण भड़ास के मंच पर लाइये ताकि आपकी बात की पुष्टि हो सके। भाषा व उसके व्याकरण में उलझ कर मुख्य मुद्दा जिसमें कहा गया था कि जैन राक्षस होते हैं वो तो कहीं गुम होता प्रतीत हो रहा है। मेहरबानी करके सभी बातों को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत करें। ये अवश्य ध्यान रखिये के आपकी लिखी हुई कोई भी बात भड़ास के वैश्विक मंच के द्वारा पूरी दुनिया में पहुंच जाती है यदि कहीं भी कोई ढीलापन रहा तो विमर्श लड़खड़ा जाता है। निजी तौर पर मैं मानता हूं कि दैवीय और राक्षसी प्रव्रत्ति का मिश्रण ही तो है मनुष्य। अब आप क्या बताना चाहते हैं, क्या राक्षस कोई विशेष प्रजाति है अथवा दुष्ट सोच के मानव? यदि दुष्ट मानव ही दानव या राक्षस हैं तो ये सिर्फ़ जैन ही क्या हर समुदाय में मिल जाएंगे बल्कि ज्यादातर तो इन्ही की भरमार है। शायद मेरे भीतर भी कहीं न कहीं एक राक्षस खामोश बैठा रहता है जो पता नहीं कब किन परिस्थितियों में बाहर निकल आएगा। आप दोनों के स्पष्ट आलेखों का इंतजार है मात्र शब्द-प्रपंच से बचें।
जय जय भड़ास

1 comment:

मुनव्वर सुल्ताना said...

मुनेन्द्र भाई सहमति है आपसे.....
जय जय भड़ास

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