अनूप मंडल के भियो क्या ये पुस्तक आप का पर्तिनिधितिव करती है करती है

यह किताब मैंने फायदा आम के वास्ते व म्हणत तम् और बहुत से रुपया खर्च कर के तैयार की है इस वास्ते सब सज्जनों से प्राथना है इस किताब को तमाम और कमाल व हर्फ़ व हर्फ़ व गौर से पढ़े और सोचे समझे और इन बनियो के जाल से बचे


पेज २


साधु अनूपदास उस, परमात्मा को अनेक धन्यवाद देता हू कि, जिसने पहाड, नदी नाले, समुद्र आदि अनेक – अनेक आश्चर्य युक्त इस पृथ्वी को बनाया और मनुष्य, पशु, पक्षी आदि एक से एक विचित्र जीव इसमें उत्पन्न किए, पर उसकी कारीगरी का भेद किसी को मालूम नहीं पड़ा । ऐसी विचित्र सृष्टि में दूसरी विचित्रता क्या देखी कि, सौदागर महाजनांन ने ऐसा जाल रच रखा है, कि उसमें जो शख्स फॅंसता है फिर उसका निकलना मुश्किल हो जाता है । इसलिए मैं दुनिया के हिन्दू, मुसलमान, फकीर, साधु, सन्त, महाराजा, राजा, सातों-आठों विलायतों के बादशाह और खासकर दयालु महाराजाधिराज पंचम जॉजॅ बहादुर की खिदमत में हाथ जोडकर अर्ज करता हूँ कि जिसको जादूचाला, राक्षसी विद्या या काफिर विद्या और इन्द्रजाल कहते है, यह महा पाप है । इसको पहले रावण ने चलाया था, लोगों की धन दौलत अकाल पड़ा-पड़ाकर अपने काबू में कर ली थी, फिर राजा हरनाकुश, कंश और कारुन बादशाह ने भी इस इन्द्रजाल को चलाकर लोगों को बड़ी तकलीफ दी थी । इन लोगों के पीछे बलराजा और उसके बाद इन बनियों ने इस राक्षसी पाप से काल पड़ाना शुरु किया है जैसे पहले रावण के वक्त में विभीषण की मदद से शनिचर ने इस इन्द्रजाल का पता लगाकर लोगो को आगाह किया था और सब प्रजा को इस जाल से बचने की राह बताई थी, उसी तरह मैंने भी इन सौदागर महाजनांन के जाल से बचाने के लिण इस पुस्तक में जो कुछ अर्ज किया है, उसको पढ़कर सब लोग होशियार रहें, कभी इन महाजनांन के जाल में न आवें, नहीं तो इनके जाल में फँस जाने से लोगों की बुद्घि भ्रष्ट हो जाती है और लोगों को यह भी पता नहीं लगता कि हमारा नुकसान क्यों हो रहा है और कैसे अच्छा होगा ? मैं परमदयालु परमेश्वर तथा प्रजारक्षक अंग्रेज महाराज से फिर भी प्रार्थना पूर्वक कहता हूँ कि आप मुझ गरीब अनूपदास की इस सर्वहितकारनी प्रार्थना को स्वीकार कर मुझे अनुग्रहित करेंगे । सर्वहितेच्छु
साधु अनूपदास


कमाल है न अनूप मंडल के लोगो आप सब लोगो को बनिया बता कर अपनी बनिया गिरी की दुकान चलाना चाहते है क्या इस पेज पर लिकी हुई कोई भी बात इससे है जो किसी भी धर्म गरंथ मे न हो /?

सोचो सोचो

बाकि विचार विमर्श कल

आपका नया नया दोस्त
अमित जैन

3 comments:

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

बहस जारी रहना चाहिए मगर मित्रगन उस से आमजन में जागरूकता आये इसका ख़याल रखना.

जय जय भड़ास

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मैं भी यही मानता हूं कि यदि विमर्श को इस रूप में रखें कि वह विवाद का रूप न ले तो जरूर जारी रखा जाए।
जय जय भड़ास

अमित जैन (जोक्पीडिया ) said...

बहस जो आपस मे मिलाय ,
ना कि जानी दुश्मन बनाये ,
को जारी रखा जाये .......

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