मीरा कुमार ने लोकसभा अध्यक्ष का पद सम्हाल लिया और बिहार से एकमात्र केन्द्रीय मंत्री भी अब नही रहा यानी की केन्द्रीय कैबिनेट में बिहार की कोई सहभागिता नही होगी। सालों से केन्द्रीय मंत्रिमंडल में कद्दावर उपस्थिति रखने वाला बिहार शिखर से शून्य पर आ चुका है। बिहार विकास के लिए ये परिणाम सकारात्मक है या नकारात्मक ?
कहने की बात नही है की आजादी के समय से ही केन्द्र में एक ध्रुव रहा बिहार मगर ये ध्रुवीकरण विकाश के लिए कभी नही रहा, कई मंत्री बने और कईयों ने बिहार की राजनितिक बिसात पर बिहार विकास को हासिये पर डाला आज वो ध्रुव अस्त हो गया मगर इस डूबते हुए ध्रुव के बावजूद विकास को क्या मुकाम हासिल होने जा रहा है।
विकास की बिसात पर नीतिश ने सत्ता पाई, विकास के नाम पर ही लालू को किया चारो खाने चित्त और चार सांसद के साथ लालू हो गए चौपाये मगर इस परिणाम ने बिहार की क्या दिशा दशा निर्धारित की है ?
नीतिश कार्यकाल के चार साल होने जा रहे हैं, बाढ़ का कहर एक बार फ़िर से सामने है ग्रामीण इलाके में पथ और परिवहन तो दूर मौलिक आवश्यकता तक का आभाव ! ना ही बिजली न ही पानी बच्चों के लिए दूध नही चिकित्सा सेवा आखिरी साँस ले रहा है मगर फ़िर भी बिहार विकाश की गाथा गाई जा रही है, और क्या अद्भुत संयोग है लोकतंत्र में लोक की आवाज बनने वाला मीडिया नीतिश के सुर में सुर मिला कर रेंक भी रहा है, क्या सरकारी विज्ञापन मिडिया को नीतिश महिमा मंडन करने को बाध्य कर रहा है ?
राजधानी पटना से लेकर सुदूर नेपाल के सीमावर्ती इलाके तक परिवहन, बिजली, बच्चों का दूध और पानी की किल्लत है मगर बिहार का विकाश हो रहा है, ये कैसा विकाश है।
आज अगर बिहार केन्द्रीय मंत्रीमंडल से शुन्य हो गया है तो क्या बिहार को चिंता करना चाहिए ?
क्या हमारे सांसद अपने निर्धारित क्षेत्रीय विकास सांसद कोटे का इस्तेमाल स्थानीय विकास के लिए बिना कमीशन के खरचेंगे ?
क्या सांसद बदलाव के इस माहौल में बिहार की छवि को विकास की धारा से बदलेंगे ?
क्या मीडिया महिमा मंडन के बजाय लोक की आवाज बनेगा ?
हम बहुत मंत्री झेल चुके अब हमें मंत्री नही बिहार पुत्र चाहिए , कौन बनेगा ????
एक खुला प्रश्न उत्तर की अपेक्षा करता है। जो सिर्फ़ बिहार और उसकी अस्मिता के लिए हो राजनीति, स्वार्थ वैमानास्वता के साथ भ्रष्ट आचरण को छोड़ लोकतंत्र में नेता और मीडिया अपनी जिम्मेदारी निभाएगा ?
8 comments:
बिहार के नेता केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में अपनी ‘कद्दावर’ उपस्थिति होने के बावजूद यदि बिहार को आगे बढ़ाने के बजाय अपनी जेबें भरते रहे तो वहाँ की जनता ने लालू-पासवान की लुटेरी जोड़ी को धूल चटाकर क्या बुरा किया?
बिहार को पिछले पन्द्रह वर्षों में जिसतरह दोनो हाथों से लूटा गया उसे देखकर चंगेज खाँ भी शर्मा जाय। नितीश की आलोचना करना तो आसान है क्यों कि बिहार को चार-पाँच साल में एक विकसित राज्य बनाने और बाढ़ की आपदा से मुक्ति दिलाने के लिए तो साक्षात् भगवान का अवतार लेना भी नाकाफी होगा।
आपको चार साल साल पुराने बिहार और आज के बिहार में फर्क नहीं दिख रहा हो तो एक बार चम्पारण में बगहा से बेतिया की सामाजिक यात्रा कर आइए। जहाँ दिन डूबने से पहले सभी लोग अपने घरों में दुबक जाते थे क्यों कि जंगल पार्टी का राज सड़कों पर आ जाता था। अपहरण, फिरौती और लूट रोज होती थी। आज लोग आधी रात को भी जरूरत पड़ने पर बाहर निकल सकते हैं।
जो सड़कें बीसों साल से मरम्मत की मोहताज थीं, केवल गढ्ढे ही बच गये थे, वहाँ अब सवारी चलाने लायक हो गयी हैं।
आप एक बार हो आइए वहाँ। लोगों से बात करके देखिए। कितनी राहत महसूस करते हैं वे लोग, यह जान जाइए तब ऐसी बकवास समीक्षा नहीं लिखेंगे।
पासवान जैसे घिनौने आदमी को सिर पर चढ़ा कर वहाँ की जनता ने देख लिया, जिसे मन्त्री बनने के लिए किसी के साथ हम-बिस्तर होने से गुरेज नहीं हैं। दलित और सेकुलर का पाखण्ड भी जनता ने देख लिया।
आखिर वो यह न करती तो क्या करती?
suruaat to hui.dheere dheere bihar phir shikhar par aaega .
rajneesh ji mujhe lagataa hai bihar ki sthiti ko le kar aap ki chinta bilkul jayaz hai agar desh ke sabhi states me ek jesa vikas ho tabhi dehs tarakki kar sakta hai shayad bihar me sab se adhik bhrashtachar hi iska karan hai abhi kya keh sakte hain kuchh nazar nahin aa raha shubhkamnayen
Achcha hua. Mantri nahi rahenge to loot to band hogi. Kuch vikas ho jaaye.
acchha likha hai aapne. vaise bhi is bar bihar k logo ne na sirf lalu pasewan ko haraya balki kai aur doggajo ko bhi dhul chatai hai.
वो कहते हैं न की जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों.. उसी तरह से हमें उन्मीद है की प्रधानमंत्री खुद बिहार के लिए विशेष ख्याल रखेंगे... वैसे भी अहम् सहभागिता के बाबजूद भी हम पिछरे थे अब बिना सहभागिता के भी देख लें क्या फर्क पड़ता है ...
सही बात कही है आपने,
अब बिहार को मंत्री नहीं बिहार पुत्र चाहिए जो बाकायदा विकास के लिए आगे आये और अहम् भूमिका निभाये.
लिखते रहिये
बड़े भाई, लगता है ठाकुर जी अखबारों और मीडिया के आधार पर कह रहे हैं, जरा जा कर देखें जहा सड़क आज भी नहीं, परिवहन के नाम पर निजी बस वालों का रंगदारी, स्वास्थय के नाम पर ना ही डाक्टर ना ही दावा, बिजली आती है नहीं.
जारी रहिये
शुभकामना
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