संवेदनशील कवि और कलाकार

लोकल ट्रेन में अधपगली लड़की के साथ हुए

बलात्कार में निकली चीखों पर तुम आर्ट फिल्म बनाते हो,

पता नहीं पर तुम्हारी इस हिट फिल्म का हर बार भीड़ भरा शो

दोहराता है उस बलात्कार को जो हुआ था बस एक बार ट्रेन में;

तुम बलात्कार की पीड़ा में तलाश लेते हो कला की बारीकियां

शराबी पति से रोज बैल्ट और जूतों से पिटती

औरत के जिस्म पर उभरे नीले-काले निशानों में

तुम्हें कलाकृति का मास्टर पीस दिखने लगता है

तुम उन निशानों के रंग समेट कर कैनवास पर अपनी कूंची से

बना लेते हो लाखों रुपए की बेशकीमती पेंटिंग

आतंकियों की गोलियों से तड़पते लोगों और

उजड़े परिवारों की तक़लीफ में तुम्हें मिल जाती है

तुम्हारे नाटक की थीम जिसके सैकड़ों मंचन होते हैं

पर किसी भी शो में वह नहीं आता, मर गया है

जिसके परिवार का कोई उस हमले में बेकुसूर ही

बच्चा जनने की कष्ट से बिलबिलाती पत्थर फोड़ने वाली के

मरे हुए बच्चे की पैदाइश पर निकले आंसुओं में तुम

ढूंढ लेते हो नज़्म और कविताएं लेकिन वह नहीं पढ़ पाती

तुम्हारे दीवान और काव्य संग्रह, लग जाती है दिन में पत्थर फोड़ने में

और अगले बच्चे की तैयारी में हर रात में थक हार कर

लेकिन तुम तो कवि ठहरे, संवेदना जगाने वाले हरेक

बात और मुद्दे को मन ही मन शुक्रिया करते हो

जुगाली करके फिर नया मुद्दा चरते हो

स्वीकार लेते हो ज्ञानपीठ पुरुस्कार

पीठ थपथपाते हो खुद ही अपनी हर बार.........
जय जय भड़ास

4 comments:

मनोज द्विवेदी said...

GURUJI...APKA NAZARIYA JABARDUST HAI..JAMKAR NIKALI HAI BHADAS.
JAI BHADAS JAI JAI BHADAS

गुफरान सिद्दीकी said...

वाह वाह डॉक्टर साहब क्या कह गए आप वास्तविकता यही है यहाँ हर तरफ व्यापारी घूम रहे हैं और मुर्दा जिस्म से लेकर मुर्दा आत्माएं तक बेच रहे हैं और जनता घनचक्कर बनी उनके चक्कर काट रही है और ये व्यापारी माल काट रहे हैं और सरकार इन मुर्दा बेचने वालों का सम्मान करती रहती है ............,
समाज में रुपेश जी जिस नै सोच के साथ अपने कदम रखा है वो एक न एक दिन सोये लोगों की नीद ज़रूर तोड़ेगी..................आपका हमवतन भाई गुफरान...अवध पीपुल्स फोरम...फैजाबाद...

mark rai said...

wakai jugaali karne par hi to inaam milta hai ..... nak ragaro ..tabhi baat banegi jo nak nahi ragrega wah bhadashi kahlaayega ....

भूमिका रूपेश said...

पिताजी कभी कभी लगता है कि एकदम नीरस हैं लेकिन कभी कभी खुद ही "क्योंकि मैं हिजड़ा हूं" जैसी संवेदना से भरी कविता लिख जाते हैं जो भाई चंदन श्रीवास्तव को इतना अंदर तक झकझोरती है हमारे जैसे बदनसीबों के बारे मे कि वे उसे आधार में लेकर पूरा एक कार्यक्रम ही बना डालते हैं,ये जो भी लिखा है एकदम सत्य है लेकिन एकदम शुद्ध भड़ास है
जय जय भड़ास

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