वेबपेज से निकल कर संबंध साकार होते हैं भड़ास पर....यही जिंदगी है।

बांए से दांए: डा.रूपेश श्रीवास्तव, श्री रजनीश के.झा, मनीषा नारायण एवं स्वयं मैं दिव्या रूपेश
अग्नि भइया आपके द्वारा डाली गई पोस्ट में चित्र में देखिये मैं भी हूं रजनीश मामा और अपने पिताजी डा.रूपेश जी के साथ नई मुंबई के वाशी रेलवे स्टेशन पर, पहचाना या नहीं?मैंने रजनीश मामा जी को बताया था कि मैं दिल्ली की रहने वाली हूं लेकिन वक्त के थपेड़े पता नहीं कहां कहां ले जाते हैं। आपने अच्छा करा जो यादों को फिर ताजगी में वापस ले आए। भड़ास का मंच ही है जिसने हम सबको आफ़लाइन और आनलाइन इतनी मजबूती से जोड़ रखा है। भड़ास बस दिमागी किच किच नहीं रह गया बल्कि एक मजबूत सामाजिक सरोकार का प्लेट्फ़ार्म बन चुका है। परिवार का विस्तार धीरे धीरे होता जा रहा है जैसे लोग समझेंगे कि भड़ास मात्र एक वेबपेज नहीं है बल्कि जिंदगी जीने का एक बेहतर तरीका है तो जुड़ते ही जाएंगे। अभी भी लोग भड़ास की कुछ विशेषताओं के कारण टिप्पणी तक करने में हिचकिचाते हैं। जिस दिन वे खुद ईमानदार हो सकेंगे सारी हिचक समाप्त हो जाएगी। रजनीश मामा जी और मेरे पिताजी डा.रूपेश श्रीवास्तव भड़ास का संचालन जिस तरह कर रहे हैं यकीन मानिये कि ये दोनो हाथों में जलते सुलगते अंगारे लेकर चलने जैसा है कि मुस्कराते रहो और दूसरों को अपना बना कर खुशियां बांटते चलो।
जय जय भड़ास

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