विष्णु प्रभाकर: हिन्दी का एक और बडगद धराशायी.

हिन्दी के वयोवृद्ध गाँधीवादी साहित्यकार विष्णु प्रभाकर का शुक्रवार रात को निधन हो गया। वे 96 वर्ष के थे। पिछले कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे। उनको पिछले दिनों महाराजा अग्रसेन अस्पताल में साँस लेने में तकलीफ के कारण भर्ती कराया गया था। करीब दो सप्ताह अस्पताल में रहने के बाद कल रात पौने एक बजे उन्होंने अंतिम साँसें लीं। विष्णु प्रभाकर का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा क्योंकि उन्होंने मृत्यु के बाद अपना शरीर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को दान करने का फ़ैसला किया था।


उन्हें उनके उपन्यास अर्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उनका लेखन देशभक्ति, राष्ट्रीयता और समाज के उत्थान के लिए जाना जाता था। उनकी प्रमुख कृतियों में 'ढलती रात', 'स्वप्नमयी', 'संघर्ष के बाद' और 'आवारा मसीहा' शामिल हैं. इनमें से 'आवारा मसीहा' प्रसिद्ध बंगाली उपन्यासकार शरतचंद्र चटर्जी की जीवनी है जिसे अब तक की तीन सर्वश्रेष्ठ हिंदी जीवनी में एक माना जाता है.
प्रभाकर को पद्म विभूषण के साथ ही हिन्दी अकादमी पुरस्कार, शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, शरत पुरस्कार आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में अर्द्धनारीश्वर, धरती अभी घूम रही, डॉक्टर, सत्ता के आर-पार, मेरे श्रेष्ठ रंग, आवारा मसीहा, शरतचन्द्र चटर्जी की जीवनी, सरदार शहीद भगत सिंह, ज्योतिपुंज हिमालय शामिल हैं।
भड़ास परिवार हिन्दी पुत्र के निधन पर शोक में है और प्रभाकर जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
जय जय भड़ास
फोटो साभार : नभाटा

3 comments:

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

श्रद्धेय विष्णु जी हमेशा अपनी कालजयी रचनाओं और हमारे दिलों में जीवंत बने रहेंगे। आदरपूर्ण श्रद्धांजलि...
ॐ शांति शांति शांति

mark rai said...

ham unhe hameshaa yaad karege....wo hamaare dilo me basate hai ...

फ़रहीन नाज़ said...

मैंने अब तक इन्हें नहीं पढ़ा था लेकिन अब पढ़ सकूंगी क्योंकि इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले बच्चों को तो इनकी हवा तक नहीं लगने दी जाती है क्योंकि अगर इन जैसे लोगों को पढ़ कर अपने नैतिक मूल्य जान लिये तो विद्रोह न कर बैठें
जय जय भड़ास

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