हिंदी ब्लागिंग ने दिया हिजड़ा होने का दंड/भड़ास से लैंगिक विकलांग मनीषा नारायण सहित तीन की सदस्यता समाप्त


वैसे भी मैंने जीवन में इतने दुःख तकलीफ़ और तिरस्कार को भोग लिया है कि अब तो यदि कुछ भी ऐसा हो तो कोई आश्चर्य नहीं होता लेकिन अब भी कहीं मन में कुछ मानवीय कमजोरियां शेष हैं जिनके कारण मैं कुछ स्थायी धारणाएं बना लेती हूं किसी भी व्यक्ति के बारे में, मुझे याद आते है वो दिन जब लगभग साल भर पहले मुझे भाई डा.रूपेश श्रीवास्तव अपने घर लेकर आये थे किस तरह हाथ पकड़ कर कंम्प्यूटर पर जबरदस्ती बैठाया था मैं डर रही थी कि कहीं कुछ खराब न हो जाए। हिंदी कम आती थी बस कामचलाऊ या फिर हिंदी में दी जाने वाली गन्दी गन्दी गालियां। भाई ने टाइप करना सिखाया तो अजीब लगा कि अंग्रेजी के की-बोर्ड से हिंदी और तेलुगू व तमिल कैसे टाइप हो रहा है। एक उंगली से टाइप करी पोस्ट शायद भड़ास पर अभी भी अगर माडरेटर भाई ने हटा न दी हों तो पड़ी होगी, एक कुछ लाइन की पोस्ट टाइप करने में ही हाथ दर्द करने लगा था। लिखना सीखा, हिंदी सीखी लेकिन मौका परस्ती न सीख पायी। एक पत्रकार और ब्लागर मनीषा पाण्डेय के नाम से समानता होने के कारण भड़ास पर बड़ा विवाद हुआ जिसमें कि तमाम हिंदी के ब्लागर उस लड़की की वकालत और भड़ास की लानत-मलानत करने आगे आ गये। मैंने सब के सहयोग से अपना वजूद सिद्ध कर पाया। मैं लिखती रही, "अर्धसत्य" (http://adhasach.blogspot.com/) बनाया भाई साहब ने सहयोग करा। कुछ दिन पहले की बात है कि जब भड़ास के मंच पर एक सज्जन(?) ने डा.रूपेश श्रीवास्तव पर एक पोस्ट के रूप में निजी शाब्दिक प्रहार करा कि वे आदर्शवाद की अफ़ीम के नशे में हैं वगैरह...वगैरह। मैंने, भाईसाहब, मुनव्वर सुल्ताना(इन्हे तो भड़ास माता कह कर नवाजा जाता था) ने इसके विरोध में अपनी शैली में लिखा। अचानक इसका परिणाम जो हुआ वह अनपेक्षित था कि भड़ास पर से मेरी, मुनव्वर सुल्ताना और मोहम्मद उमर रफ़ाई की सदस्यता को बिना किसी संवाद या सूचना अथवा आरोप के बड़ी खामोशी से समाप्त कर दिया गया। इससे एक बात सीखने को मिली कि लोकतांत्रिक बातें कुछ अलग और व्यवहार में अलग होती हैं। माडरेटर जो चाहे कर सकता है इसमें लोकतंत्र कहां से आ गया, उनका जब तक मन करा उन्होंने वर्चुअली हमारा अस्तित्त्व जीवित रखा जब चाहा समाप्त कर दिया। मुझे अगर हिजड़ा होने की सजा दी गयी है तो मुनव्वर सुल्ताना और मोहम्मद उमर रफ़ाई को क्या मुस्लिम होने की सजा दी गयी है? यदि इस संबंध में भड़ास के ’एकमात्र माडरेटर’ कुछ भी कहते हैं तो वो मात्र बौद्धिकता जिमनास्टिक होगी क्योंकि बुद्धिमान लोगों के पास अपनी हर बात के लिये स्पष्टीकरण रेडीमेड रखा होता है बिलकुल ’एंटीसिपेटरी’..... वैसे तो चुप्पी साध लेना सबसे बड़ा उत्तर होता है बुद्धिमानों की तरफ से । आज मैं एक बात स्पष्ट रूप से कह रही हूं कि सच तो ये है कि न तो मुनव्वर सुल्ताना का वर्चुअली कोई अस्तित्त्व है और न ही मोहम्मद उमर रफ़ाई के साथ ही मनीषा नारायण का बल्कि ये सब तो फिजिकली अस्तित्त्व में हैं और वर्चुअली अस्तित्त्वहीन और न ही इनकी कोई सोच है अतः इन्हें किसी मंच से हटा देना इनकी हत्या तो नहीं है। मुझे और मेरे भाई को अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है शायद हो सकता है कि आने वाले समय में हम सब भी बुद्धिमान हो सकें और हिंदी ब्लागिंग के अनुकूल दिमाग और दिल रख सकें।
आदतन ही सही लिखूंगी जरूर
जय जय भड़ास

5 comments:

मनोज द्विवेदी said...

shayad sach kaha gaya hai..IS RAAT KI SUBAH NAHIN.....................

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मनोज भाई रात जब खत्म होने को होती है तो अंधेरा ज्यादा ही गहरा सा लगने लगता है। ये तो बस परीक्षा का एक चरण मात्र है। जिनमें साहस है सच्चाई को स्वीकारने की वो साथ चलेंगे।
जय जय भड़ास

दीनबन्धु said...

बस इतना ही कि कोई भी ब्लाग ये निर्धारित नहीं कर सकता कि आपको क्या लिखना है, भड़ास से सदस्यता समाप्त करके उन्होंने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है
जय जय भड़ास

prashant said...

भड़ास से मेरा विस्वास उठने लगा है।ये ठीक नहीं हो रहा है।राजनीति हर जगह चालू है।
जो होता है अच्छे के लिये होता है।सायद भडा़स की विफलता की कहानी यहीं से शुरू हो?

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

दीदी,
भडास की सफलता भडास के मठाधीश के कारण नही थी, क्यौंकी मठाधीश के कलम में इतनी ताकत नही की वोह कुहराम मचा सके, लल्लो चप्पो की विरासत से उभरे लोग मठाधीश बनने की ही जुगत में रहते हैं, और लोगों का इस्तेमाल कर अपनी महत्वाकंशा को साधते हैं, तकलीफ इसी बात की है की हमने जिसे लोकतंत्र समझा वो फासीवाद का जामा निकला,
रही बात अपनी आवाज के साथ आगे आने की तो इसमे कोई रुकावट नही है क्यौंकी हम भडासी उन में आते हैं जो अपना रास्ता ख़ुद बना लेते हैं. चलिए फ़िर से साथ हो जय भड़ास का नाद करें क्यौंकी ये किसी के लिए महत्वाकंशा हो सकता है मगर हमारे लिए तो पूजा है, अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए बस कलम की लेखनी धारदार और तेज करनी होगी बस.
जय जय भड़ास

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