हमला, मसला, मसाला और सवाल

अभी तक देश मुंबई हमले से उबर नही पाया है, मैं भी नही। लेकिन उम्मीद है की समय सब कुछ भुलाने में मददगार होगा। जैसा की अब तक कई चीजें भुला दी गयीं है। जी हाँ मैं भी भुला दिया गया एक गरीब आम हिन्दुस्तानी हूँ, ठीक उतना हीं गरीब जितनी देश की आधी आबादी से ज्यादा लोग हैं। मैं मुंबई के ताज होटल तो क्या, आगरा का ताजमहल भी देखने की हसरत भी नही रखता, क्यूंकि मैं गरीब हूँ, कोई देशी पर्यटक नहीं। मैं उतना गरीब हूँ जिसके लिए तेरह सूत्रीय गरीबी निर्धारण को बनने के लिए सरकार करोड़ों रुपये फूंक देती है। इस मुंबई हमले में मरे गए लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त कर रहा हूँ। इसलिए नहीं की अख़बारों में मेरी फोटो छपे और मेरा नम हो , वो इसलिए की मैं लगभग दुखी ही रहता हूँ। जैसे ही मुंबई हमले की जानकारी मिली मैंने अपने दुःख को और टीसने दिया, अभी तक टीस बाकि है। इस आतंकी हमले ने देश कई मसले एक साथ थोक के भाव दे दिए जैसे- लचर सुरक्षा व्यवस्था, लाचार सुरक्षाकर्मी, फ़ेल इंटेलिजेंस, मुहफट नेता, बकबक करती मीडिया और इन सबसे बढ़कर आक्रोशित जनता। ये वही जनता है जो असेमेसेस, इन्टरनेट , कम्युनिटी साइट्स और ब्लोग्स के जरिये विरोध करने इकट्ठा हुआ थे। मैं गरीब मेरे पास कोई मोबईल भी नही था। वरना पहुंचू या न पहुंचू जबाब तो दे ही देता। खैर बार-बार अपनी किस्मत का रोना रोना भी किसी जाहिल हरकत से कम नही है। चलिए जब इतने मसले हैं तो मसाला भी बनेगा ऐसा तय था। सो मसाला बनना तैयार हो गया, इसके इस्तीफे , उसके इस्तीफे , पड़ोसी मुल्क पर हमले करने का मसाला, अमेरिका रूस को हमदर्दी दिखाने का मसाला, इन्ही मसालों के बिच टीवी स्क्रीन पर एम्दिएच मसाले का विज्ञापनी मसाला। मैं गरीब हूँ मेरा इस मसाले से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। हाँ ये अलग बात है की भोज-भात में कभी किसी ने मिलाकर खिला दिया हो। मैंने पढ़ा तो नहीं है लेकिन किसी को पढ़ते हुए सुना जरुर है के - गरीब लोग सवाल बहुत करते हैं, या यूँ कहिये की इनके पास सवाल बहुत होते हैं। अब ये ग़लत है या सही मुझे नही पता क्यूंकि मैंने कभी सवाल किए ही नही और कोई सुनता भी नहीं। लेकिन जब इतने मसले और इतना मसाला मौजूद है तो सवाल उठाना लाजिमी है। सिर्फ़ एक सवाल- पहले जब कभी आतंकी हमले होते थे तो मरने वाले अमूमन आम लोग होते थे। तब मैं सोचता था की रोज़ एक्सीडेंट से, बिमारियों से व अन्य कारणों से मेरी तरह हजारों लोग मरते है , दस -बीस इकट्ठे मर गए तो क्या हुआ? थोडी पीडा जरुर होती थी मगर भुला देता था। सुना है अबकी आतंकी हमले में कई खास लोग मरे हैं। पैसे वाले ज्यादा मरे हैं। मुझे पहले से ज्यादा दर्द महसूस हुआ, क्यूंकि इन्ही से देश चलता है ये टैक्स देने वाले है। मेरा प्रश्न सिर्फ़ इतना है की क्या येही दर्द उन तमाम पैसेवाले , फ़िल्म वाले और विरोध कर रहे हजारों लोगों को भी होता था , अबसे पहले या नही? अगर होता था तो पहले क्यूँ नही विरोध करते थे? आज ये लोग टैक्स न देने की तख्तियां ले कर नारे लगा रहे है। ऐसा पहले क्यों नही किया? क्या इन्हे खास लोगों के मरने का इंतजार था? मैं पहले भी दुखी होता था और आज भी दर्द महसूस करता हूँ बेकाज मैं गरीब हूँ। शायद मुझे ये सवाल नही पूछने चाहिए थे। अब आप हीं बताइए की इस हमले से मसले पैदा करने वाले, हमले को मसाला बनाने वाले सही कर रहे हैं। या इस हमले से एक सवाल करने वाला मुझ जैसा गरीब ठीक है।

4 comments:

फ़रहीन नाज़ said...

तेरी बातें गरम मसाला...तेरा लिखना गरम मसाला...तेरा आना तेरा जाना गरम मसाला...
गहरी लिखाई कर रहे हो प्यारे...
लगे रहिये
जय जय भड़ास

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मनोज भाई,जो लिखा है वह मसाला कई लोगों को बड़ा तीखा लगेगा. ढकोसलेबाज लोग आपकी लेखनी के सामने दुम को टांगों के बीच लेकर ही खड़े रहेंगे....
जय जय भड़ास

अजय मोहन said...

बहुत खूब भाई शानदार लिखा है
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

क्या तल्ख़बयानी है, मनोज भाई इस कड़वी बात को कहने के लिए बधाई, हजम करने वालों का हाजमा कभी नही सुधरेगा,
सटीक बेबाकी.
जय जय भड़ास

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