आंसू की इस नगरी में,
दुःख हर क्षण पहरा देता।
साम्राज्य एक है मेरा ,साँसों से कहला देता॥
मधुमय बसंत पतझड़ है,
मैं जीवन काट रहा हूँ ।
अब अश्रु जलधि में दुःख के, मैं मोती छांट रहा हूँ॥
आंसू की जलधारा में,
युग तपन मृदुल है शेष ।
माधुरी समाहित होकर, उज्जवल सत् और विशेष ॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह 'राही'
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