बुद्धिजीवियों की बरसात.....

हर कोई व्यस्त है सलाह देने मैं, हर लोग एक दुसरे को समझाने मैं लगे हैं की ग़लत क्या है सही क्या है......
योगगुरु अब योगगुरु नही रहे राजनितिक बन गए हैं, योग साधना से उनका ध्यान अचानक ही समाज के घटते सांस्कृतिक मूल्यों की तरफ़ ज्यादा दिख रहा है.....धर्मगुरु भी अब धर्म छोड़ कर सब कुछ बताते हैं....

दूसरी तरफ़ एक बाढ़ सी आ गई है पत्रकारों की, पता नही कैसे, क्यों और कब लोगों ने पत्रकारों को अधिकार सौंपा की हर वो समस्या जो की समस्या नही है अचानक ही मुद्दा बन जाती है, वैसे इसमे कोई बुराई नही परन्तु हर वो समस्या जो की आम जिंदगी से सरोकार रखती है इन पत्रकार बंधुओं को दीखता ही नही है........आज तक ना ही देखा ना ही सुना की किसी भी अच्छे कदम जो की सिस्टम ने उठाये हो उनको हमारे पत्रकारों ने लोगो तक पहुंचाया हो (
उस पर इनका कहना है की ये तोह सिस्टम का कर्तव्य है), एक भी स्तरीय बहस चाहे वो संसद मैं हो या फ़िर जन साधारण के बीच हमारे पत्रकारों को फूटी आँख नही सुहाता है, परन्तु लालू जी की हर वो बात जिसमे जनसाधारण के लिए भले ही कुछ न हो २४ * ७ देखने और सुनने को मिलता है........

पढ़े लिखे और अनुभवी लोग जो हमारी कार्यपनाली को चलाने के लिए जिम्मेदार है की पतलून उतारने की ज़िम्मेदारी उन लोगों ने ले रखी है जिनकी सिक्क्षा और समझ की जानकारी शायद ही किसी आम जन को हो, दुसरे शब्दों मैं अगर आप कुछ नही हैं तो एक पत्रकार तो हैं ही...

बुद्धिजीवियों की खोज जारी है.......






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