मैं जब से महाराष्ट्र मे रह रहा हूं तब से यहां की परम्पराओं के बारे में जानने का कौतूहल हमेशा से रहने की वजह से पूछताछ करता ही रहता हूं। श्रावण माह के शुरू होने पर बहुत सारे लोग जो कि श्रावण को एक पवित्र माह मानते हैं वे मांसाहार और शराब बंद कर देते हैं। लेकिन राष्ट्र के अंदर महाराष्ट्र हो और उसमें कुछ "महा" न हो तो बात जमती नहीं है। श्रावण माह शुरू होने से एक दिन पहले अमावस्या होती है वह दिन एक पर्व के रूप में समाज में घुसा है और लोग इस पर्व को जोरशोर से मनाते हैं, ध्यान रहे कि ये पर्व धार्मिक नहीं होता यानि कि कोई पूजापाठ नहीं होती है। इसे मनाने का तरीका अत्यंत विचित्र है। शराब और मांसाहार करने वाले लोग इस दिन को साल में वैसा दिन मानते हैं कि इस दिन के बाद पूरा श्रावण वो सुरापान और मांसाहार से वंचित रहने वाले हैं तो इस दिन वे पूरे महीने का कोटा पूरा करने के लिये डट कर मटन मुर्गा खाते हैं और इस सीमा तक दारू पीते हैं कि तर्राट होकर सीधे गटर तक पहुंच जाएं। यही कारण है कि इस दिन को "गटारी अमावस्या" कहा जाता है। वैसे जो परम्परावादी है वो ही इस पर्व को मनाते हैं साधारण आदमी के लिये तो रोज ही गटारी अमावस्या रहती है कि बस देसी चढ़ायी और टट्टू हो कर सीधे गटर में.......। परम्पराओं का सरंक्षण करा जाना चाहिए खास तौर पर इस तरह की मूल्यवान परंपराएं तो अवश्य ही बचाई जाएं जिन पर पाश्चात्य सभ्यता का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
जय जय भड़ास
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nice
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