बच्चे को पैदा करने की सबसे पहली कार्यवाही तो संसार की सबसे सरल कामों में गिनी जाती है अगर पुरुष के काम आने वाले सारे कलपुर्जे दुरुस्त हैं। किन्तु जब बच्चा दुनिया में आ जाता है तब मां-बाप होने की जिम्मेदारी आ जाती है। यदि माता-पिता समझदार हैं,नैतिक हैं,स्वस्थ हैं,सामाजिक हैं तो बच्चे का विकास सही कर पाएंगे अन्यथा तो "दास मलूका कह गए सबके दाता राम....."। मानसिक व शारीरिक तौर पर पूर्णतया स्वस्थ स्त्री अगर बच्चे को जन्म दे तो बात अलग है लेकिन यदि यही बच्चा एक मानसिक विकलांग स्त्री के गर्भ से बलात्कार के फलस्वरूप पैदा हुआ हो तो क्या बात सामान्य है। अब इस मामले में हमारे देश की महान न्यायपालिका कूद कर तय करेगी कि क्या सही है ध्यान रहे कि अभी हाल ही में इसी न्यायपालिका की फैक्टरी से वह निर्णय बना कर निकाला गया था जिसमें कि सारे सामाजिक नैतिक मूल्यों को बहस के आधार पर ताक़ पर रख कर हमारे विद्वान जज अंकल ने फैसला दिया कि समलैंगिक संबंध अब दंडनीय कानूनी दायरे से बाहर होंगे। सोच लो ठाकुर...... अभी क्या क्या निर्णय आने बाकी हैं अगर तुम्हें कुछ चाहिये तो सही मौसम है एक याचिका दायर कर दो हो सकता है मनचाहा फैसला हो जाए।
जय जय भड़ास
1 comment:
dard hi dard
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