मैं पिछले कई दिनों से गहरे सदमें में हूं कि अजमल कसाब ने ये मान लिया कि वह गुनाहगार है। पहले अब्बास काजमी जी ने उसको जो घुट्टी पिलायी थी उसके कारण वह कहता रहा कि मैंने कोई अपराध नहीं करा। इस बीच उसके वकील अब्बास काजमी को भी ये रंचमात्र भी एहसास न हुआ कि वो वकालत के नाम पर जो कर रहा है मानवता के सामने कितना बड़ा गुनाह है भले ही देश की अदालत इसे अत्यंत संवैधानिक मानती है। अचानक कसाब को सदबुद्धि मिल गयी होगी ऐसा नहीं है या अब्बास काजमी को इंसानियत का एहसास हो गया होगा या फिर उनके समुदाय ने उनका हुक्का-पानी बंद कर दिया होगा बल्कि ये तो मुझे लगता है कि एक नया टोटका है इन दोनो का जो कि भारत की आम जनता को बताना चाहते हैं कि देखो हमने तो अपराध स्वीकार भी लिया तो क्या उखाड़ लोगे क्योंकि कल को फिर हो सकता है बयान बदल जाए। यदि बयान बदलने की स्थिति न होगी तो संभव है कि कुछ नया पटाखा छोड़ दिया जाएगा। मुझे अपनी संवैधानिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है।
जय जय भड़ास
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