निगाहों में उसकी हवस दिखी.....

निगाहों में उसकी हवस दिखी
बच कर निकल आई
ये हवस तुक्छ बदन की ,
जिंदगी को तार तार करती रही
वह खोजता रहा एक बदन
उस पर दाग लगाने की
याद आई वो रात तब रो पड़ी
निहागो में उसकी हवस दिखी

मोहब्बत का वो चिराग
लगता है बुझ गया
जिससे दुनिया रोशन होनी थी
याद आई वो रात तब रो पड़ी
अब अंधेरे से लगता है डर
उजाले में भी नही मिला कही चैन
नही दीखता वो प्यार
सुना लगे सारा आसमान
मै थक कर बैठ गई
फ़िर याद आई वो रात
मै रो पड़ी

4 comments:

गुफरान सिद्दीकी said...

राय साहब अति सुन्दर एक नारी की वेदना जिस तरह से आप ने व्यक्त की वो वास्तव में ह्रदय को छु गयी बहुत दिनों बाद एक उत्कृष्ट रचना पढने को मिली.........,

आपको धन्यवाद के बधाई .......
आपका हमवतन भाई ...गुफरान.....अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद

दीनबन्धु said...

चलिये कम से कम एक आदमी तो ऐसा है जो भड़ासी होकर भी इतने कोमल भावों को लिख पा रहा है वरना हम सब तो बस सबकी मैय्या-बहिनी ही करते हैं ऐसा लोग हमारे बारे में सोचते हैं
जय जय भड़ास

मुनव्वर सुल्ताना said...

बहुत बढ़िया लिखा है भाई...
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

भावों की सुन्दर अभियक्ती
बधाई
जय जय भड़ास

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