हेपटाइटिस-बी

हेपेताइतिस बी बिमारी एक जानलेवा बिमारी हैभारत में हजारों लोग हर साल इससे मर जाते हैइसके मुख्य लक्षण है ....
बुखार जैसा महसूस होना, थकान, पेटदर्द, बुखार, खाने का मन न करना, डायरिया, पीली पेशाब आना आदि । हेपटाइटिस की शुरुआत में नॉजिया, जोड़ों में दर्द और थकान महसूस होती है। कु छ लोगों को बुखार और लिवर में सूजन के कारण पेट के दाएं ऊपरी हिस्से में तेज दर्द हो सकता है। कुछ लोगों में लक्षण नजर नहीं आते। एम्स के सीनियर गैस्ट्रोइंटेरोलॉजिस्ट डॉ. अनूप सराया का कहना है कि दुनिया में करीब 35 करोड़ लोगों में हेपटाइटिस-बी वायरस रहता है।


यह लिवर की बीमारी है। इसमें लिवर में सूजन आ जाती है, जिससे वह सही ढंग से काम नहीं कर पाता। लिवर इन्फेक्शन से लड़ता है। खून बहना रोकता है। खून से दवाओं और दूसरी जहरीली चीजों को अलग करता है और शरीर की जरूरी एनर्जी स्टोर करके रखता है।

कारण ......
हेपटाइटिस-बी बीमारी एक वायरस के कारण होती है। ये वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकते हैं। संक्रमित व्यक्ति के ब्लड, सीमेन और दूसरे बॉडी फ्लूइड से वायरस फैलते हैं। असुरक्षित सेक्स करने से, एक ही सूई से ड्रग्स लेने, टैटू आदि बनवाने से, हेपटाइटिस-बी के मरीज के साथ रहने, इन्फेक्टेड व्यक्ति के टूथब्रश, रेजर आदि इस्तेमाल करने से, इन्फेक्टेड प्रेग्नंट महिला से बच्चे को यह बीमारी हो सकती है। दवाओं के साइड इफेक्ट, ज्यादा शराब पीने, कुछ टॉक्सिक केमिकल, गॉल ब्लैडर या पैन्क्रियाज के डिसॉर्डर और रीयूज्ड सीरिंज, इन्फेक्टेड ब्लड से होने वाले इन्फेक्शन आदि भी इसकी वजह हो सकते हैं। मरीज से हाथ मिलाने, गले मिलने और साथ बैठने से हेपटाइटिस-बी नहीं फैलता है अतः इन सभी भ्रांतियो पर ध्यान नही देना चाहिएइसके पक्ष में समाज में जागरूकता फैलाने की जरुरत है


इसके इलाज में ब्लड टेस्ट, लिवर बायोप्सी भी की जा सकती है। दवाओं के जरिए इलाज एक साल तक चलता है। जिनका लिवर डैमेज हो चुका होता है, उनका लिवर ट्रांसप्लांट करना पड़ता है। शुरुआत में ही हेपेताइतिस का टिका लगवा लेना बेहतर होता है

2 comments:

मुनव्वर सुल्ताना said...

मार्कण्डेय भाई आपको आश्चर्य होगा ये जान कर कि एम्स के डाक्टर हों या विकासशील देशों के सारे माडर्न चिकित्सक वही दोहराते हैं जो मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी या कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी वगैरह में करे गये शोधपत्र कहते हैं, और वो वही कहते हैं जो अमेरिका का बाजार कहता है। ई.टी.जी. पर कोई ध्यान नहीं देना चाहता क्योंकि उससे इन सबकी दुकान बंद हो जाएगी और आयुर्वेद का परचम लहराने लगेगा।
जय जय भड़ास

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मार्कण्डॆय भाई भारतीय लोगों में एक कमी है कि वे बड़े भोले होते हैं। पड़ोसी को बाप कहने में भी भोलेपन में हिचकिचाते नहीं है ठीक वैसा ही हाल पश्चिम से आयी ऐलोपैथी का है, आयुर्वेद जैसे संपूर्ण विषय को जो कि एक "यूनिफ़ाइड साइंस" है मात्र चटनी-चूरन वाली चिकित्सा पद्धति के रूप में प्रस्तुत करा है जबकि अतीत बताता है कि दुनिया भर से विद्यार्थी हमारे देश में तक्षशिला और नालंदा में पढ़ने आते थे।
जय जय भड़ास

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