इस छठवें W के कारण पत्रकारिता जिस तरह संकुचित होगी आप अंदाज भी नहीं लगा सकते। क्षेत्रीयता के आधार पर बने समाचार पत्र पहले ही स्थानिक भाषा बोल कर क्षेत्रवासियो की हितचिंता जता बता रहे हैं। स्थानीयता में पहले प्रदेश इसके बाद जिला और इसके बाद कस्बा और गली मोहल्ले तक में पत्रकारिता को संकुचित कर राष्ट्रीय सोच का गला घोंट दिया है। यह मात्र एक षडयंत्र नहीं तो और क्या है कि आपको पता ही न चले कि राष्ट्रीय स्तर पर क्या हो रहा है अपने आसपास की खबरें पढ़ कर ही आप खुश होते रहें कि कमाल की सक्रिय पत्रकारिता है। जरा इसका नमूना देखिये-- महाराष्ट्र टाइम्स, गुजरात समाचार, वाशी टाइम्स, पनवेल टाइम्स, खारघर टाइम्स, कल्याण टाइम्स, कुर्ला टाइम्स, तो इसी तर्ज पर गली-मोहल्ला छाप पत्रकारिता कुछ ऐसी होगी :- मलाहन टोला न्यूज़, सिमरिया चौराहा समाचार, दैनिक परांठेवाली गली खबर, बल्लीमारान-24 आदि आदि। यदि यही सिमटाव क्षेत्रीयता के आधार से होता हुआ जातीयता पर आ जाए तो कुछ अंदाज है कि क्या होगा लीजिये नमूने प्रस्तुत हैं- दलित टाइम्स, ब्राह्मण समाचार, दैनिक मोची टाइम्स, सांध्य भंगी खबर, शुक्ला टाइम्स, चमार समाचार, बनिया टाइम्स, दैनिक दुबे-चौबे, कायस्थ समाचार....... जैसा कि आपके सामने एक महाभयंकर उदाहरण है जैन टीवी का, क्या इसी तर्ज पर हिन्दू टीवी और मुस्लिम टीवी न बन जाएगा??? इसका क्या परिणाम होगा?? ये फूट डालो और राज करो की डलहौजी की दुष्टता पूर्ण नीति पत्रकारिता के विराट विवेक और मानवीयता का संकुचन कर रही है। अपने फ़ायदे के लिये रद्दी खरीदने से लेकर अखबार प्रकाशित करने वाले लालाजी अत्यंत कुटिलता से पत्रकारिता में पत्रकार व संपादक की नीर-क्षीर विवेकी सोच को इस छठवें डब्ल्यू की आड़ में कुंठित करके पत्रकार के स्थान पर क्लर्क और संपादक के स्थान पर मैनेजर सजाए दे रहे हैं। कुल मिला कर यह है बाजारवाद और पत्रकारिता का समीकरण।
जय जय भड़ास
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nice
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