पत्रकारिता के पुरोधा एक अत्यंत आत्मघातक तथ्य स्वीकार चुके हैं। पत्रकारिता में सामान्यतं समाचार पांच W और एक H यानि कि what, when, where, why, who एवं how से उपजता है। अब इसमें एक और डब्ल्यू जोड़ दिया गया है यानि कि to whom (किसको) | इसके अनुसार समाचार देना किसे है उसे उसके अनुसार गढ़ा-बनाया जाए। जिस लोकतंत्र के चेहरे पर जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि की लकीरें गहरा चुकी हों उसमें पत्रकारिता का ये ठरना कि कौनसा समाचार पक्षपात पूर्ण तरीके से किसे दिया जाए समाज की जड़ में दीमक का काम करेगा। जरा उदाहरण समझिए- टाइम्स समूह का "उर्दू टाइम्स" छापता है कि बजरंग दल के कार्यकर्ता कर रहे हैं शस्त्राभ्यास...... साथ में एक फोटो प्रकाशित है जिसमें कि भगवा कपड़े पहने युवक युवतियां लाठी चलाने का अभ्यास कर रहे हैं भारत के किसी कस्बे में जो कि उत्तरप्रदेश में कहीं है। ये खबर मुंबई और अहमदाबाद के उर्दू जानने वालो में खलबली पैदा कर असुरक्षा की भावना जगा देती है। इस खबर की प्रतिक्रिया में मुसलमान भी जुट जाते हैं बचाव के उपाय जुटाने में। इस समाचार को प्रकाशित कर पत्रकारिता का कौन सा दायित्त्व निभाया गया है सिवाय साम्प्रदायिकता को हवा देने के??? लोकतंत्र के तीनों स्तम्भों के अलावा चौथा स्तम्भ पत्रकारिता खुद ही इस छ्ठवें डब्ल्यू की आड़ में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है। यह छठवां डब्ल्यू बाजार में बैठे लालाओं द्वारा अत्यंत कुटिलता से भारत की कुराजनीति से आयात करा गया है। लालची लाला इस छठवें डब्ल्यू के बीज से उपजने वाले फल को खूब जानते हैं।
जय जय भड़ास
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