मेरी पहली कविता !

मेरी परी........




एक परी थी,
हाँ वो परी ही तो थी!
मुझे वो सोनू कहा करती थी,
और में भी उसका शोनू ही तो था !
हमारी मिली जुली खनकती ,
हँसी आज भी मेरे कानों में गूंजती है,
जिसकी आवाज सुनकर मेरी आँखें बंद होती थी !
और सुबह जिसकी आवाज सबसे पहले सुनता था,
हाँ वो परी ही तो थी!
जीवन का सफ़र जारी है,
मेरा भी उसका भी,
बस नहीं है तो इतना कि,
हम हमसफ़र नहीं हैं !
परी हमसफ़र होती भी नहीं है,
सच वो परी ही तो थी !
क्या परी फिर से किसी को भी सोनू पुकारेगी ?
फिर से किसी को शोना बनाएगी ?
रजनीश के झा

3 comments:

हेमन्त कुमार said...

परी हमसफ़र होती भी नहीं है...!
बहुत खूब । आभार ।

संगीता पुरी said...

सही भाव .. सुदर अभिव्‍यक्ति !!

parul said...

bhaut hi sundar hai.pari hai kon??????????????

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