हिन्दी दिवस और एक कविता.

मिनी यादव अलीगढ की हैं, भारत के सर्वोच्च सेवा की तैयारी करती हैं, उन्होंने हिन्दी दिवस पर ही मेल से ये कविता उपलब्ध कराया की इसे प्रकाशित करे।
मिनी जी का आभार और शुभकामना।


सिसकती सी हिंदी


जिनकी यह भाषा वही इसको भूले ,

कि हिंदी यहाँ बेअसर हो रही है ।

हिंदी दिवस पर ही हिंदी की पूजा ,

इसे देख हिंदी बहुत रो रही है।

हर एक देश की भाषा है अपनी ,

उसे देशवासी है सर पर बिठाते ,

मगर कैसी निरपेक्षता अपने घर में ,

हम अपनी ज़ुबा को स्वयं भूल जाते।

मिला सिर्फ एक दिन ही पूरे बरस में ,

यह हिंदी की क्या दुर्दशा हो रही है ।

कि जिसके लिए खून इतने बहाए,

जवानों ने अपने गले भी कटवाए ,

कि जिसके लिए सरज़मी लाल कर दी ,

जवानी भी पुरखो ने पामाल कर दी ।

तड़पते थे कहने को हम जिसको अपनी ,

वही हिंदी भाषा कहाँ खो रही है।

यही देख हिंदी दुखी हो रही है ,

यह भारत कि जनता कहाँ सो रही है।

यही देख हिंदी दुखी हो रही है ,

यह भारत कि जनता कहाँ सो रही है।

जय हिंद
जय भारत


लेखक :- अज्ञात

3 comments:

रंजना [रंजू भाटिया] said...

अच्छी लगी यह कविता शुक्रिया

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर कविता है मिनी जी को बधाई दीजियेगा

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया रचना है ..हिन्‍दी के प्रति आपकी भावना बहुत अच्‍छी लगी !!

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