नज़ारे दिल्ली के, सुधारे दिल्ली को !
जरा एक नजर इस तस्वीर पर........
दिल्ली का विकाश, दिल्ली को सुंदर बनाना है, दिल्ली को विश्वस्तरीय राजधानी बनाना है, दिल्ली से झुग्गी हटाना है और पता नही क्या क्या जो बडबोली शीला सरकार लोगों को राग के रूप में सुनाती रहती है।
ये तमाम बातें सिर्फ़ उन लोगों के लिए है जो दिल्ली में शीला जी के प्रिय नागरिक हैं जिनके पास अपना घर है गाडियाँ हैं और शीला जी के प्रति भक्ति भी। मगर इन सबसे इतर आम लोग जिनसे हमारा देश बनता है, जिनके पसीने में भी लहू बहता है की समस्या के प्रति शील जी सरकार की सजगता सिर्फ़ इतनी की कामनवेल्थ गेम से पहले दिल्ली से झुग्गी हटा दो।
क्या दिल्ली किसी की व्यक्तिगत संपत्ति है ?
क्या दिल्ली सिर्फ़ गाड़ी और बँगला वालों की है ?
निसंदेह चिंतनीय है क्यूँकी फ्लाई ओवर बनाने, मेट्रो को दोडाने, और सड़क पर बस को बदल कर दिल्ली को सुंदर बनाने के लिए जो मुहीम है उसकी मार महगाई हो या अन्य स्वरुप सिर्फ़ गरीबी की मार झेल रहे आम लोगों से वसूला जा रहा है। जिस के रक्त से दिल्ली को सींचा जा रहा है उसे निचोड़ कर दिल्ली को सुंदर बनाने का शीला दिक्षित का प्रयास सराहनीय है।
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13 comments:
यह निःसंदेह अनकही है। जानकारी के लिए आभार।
rajneesh ji
aaj to wakai sach ki jiti jagti tasveer dikha di aapne........delhi ki janta kaise jiti hai aur kaise marti hai.........kya halat hain..........sach kya hai........sab aapne bahut hi suljhe huye dhang se dikha diya.
ye delhi walon se hi puchiye khaskar aam nagrik se wo kaise is daur mein jeeta hai.
nice
blgo to bahut achha hai. kya baat hai. lage raho munna bhai.
दिल्ली किसी एक वर्ग विशेष की नहीं है । जरुरत है चहुमुखी विकास की व जागरुकता की। सही कहा आपने -"दिल्ली को सुंदर बनाने के लिए जो मुहीम है उसकी मार महगाई हो या अन्य स्वरुप सिर्फ़ गरीबी की मार झेल रहे आम लोगों से वसूला जा रहा है।"
दिल्ली किसी एक वर्ग विशेष की नहीं है । जरुरत है चहुमुखी विकास की व जागरुकता की। सही कहा आपने -"दिल्ली को सुंदर बनाने के लिए जो मुहीम है उसकी मार महगाई हो या अन्य स्वरुप सिर्फ़ गरीबी की मार झेल रहे आम लोगों से वसूला जा रहा है।"
दिल्ली की कहानी एक इस तस्वीर ने कर दी, निसंदेह आम जन की अवहेलना की जा रही है.
जानकारी के लिए आभार
प्रतिक्रया के लिए आभार
भाई ये हाल दिल्ली ही नहीं सभी बड़े महानगरों का है, सत्ता बार बैठे सत्ताधारी अपने सन्निकट के लिए ही तो कार्य करते हैं, आम जन की परवाह किसने की है.
रजनीश भाई, तमाम स्थितियां हैं जिन्हें हम रोज देखते और अनुभव करके खीजते रहते हैं, वोट देने के बाद वोटर सचमुच एक निरीह प्राणी में बदल जाता है-उसे जूते मारमार कर नेता-जन प्रतिनिधियों और भ्रष्ट लोगों को ठीक करने अधिकार मिलना चाहिए, तब होगी दिल्ली सुन्दर और देश महान!
bharat desh mahan hain
yah sab usi ke nishan hain
दिल्ली की कहानी योगेश की जुबानी अगर दिल्ली के वाशिंदों को बुरा ना लगे ..
दिल्ली....ये ग़ालिब का शहर.
मुझे फक्र है के में वहां से ताल्लुक रखता
हूँ जहाँ से ग़ालिब का तालुक है , के हम भी उसी आसमान के नीचें हैं ,
जिस के नीचें कभी वो थे , के हम भी उन्हीं फिजाओं में सांस लेते
हैं जिन में वो कभी लिया करते थे , और , के हम भी उन्हीं रास्तों पर
और उन्हीं गलियों में घुमते हैं जिन में कभी वो फिरा करते थे..........
परन्तु .....
मेरी एक छोटी सी कविता जो कही न कहीं थोड़ी ही सही मगर दिल्ली की कहानी बयान करती है
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी
एक ओर दौड़ती मोटर गाड़ी, दूजी ओर साइकिल रिक्शे की सवारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
जहा अमीर करते आराम की सवारी, वही भागते बच्चें बूढे गरीब नर नारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
कही भिकारी कही मदारी, खुले आम होती चोरीचारी
कही एक दूजे पे चड़ती सवारी, तो कही होती पॉकेट मारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
कोई नेता कोई अभिनेता तो कही पे छात्रनेता
करतें बीच सड़क हाहाकारी, आन्दोलन करतें आंदोलनकारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
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