इनसे क्यों न आतंकित रहे...... ये भी आतंकवादी हैं।

देश में नक्सलवाद ने आग लगा रखी है। एक ही सनकी सोच जो कि शायद अलग-अलग मुखौटों में मौजूद है कभी कश्मीर में अलगाववाद के रूप में पगला कर सामने आ जाती है और कभी अजमल आमिर कसाब के नाम से बेमकसद आतंक को लेकर भारतीयों को डरा देती है। मार्क्स, लेनिन, कसाब के आका और माओ अगर एक एक जीवन भारत में रह लेते तो शायद समझ पाते कि यहां के अत्यंत भोले और "चूतिया" लोग अब तक दिमागी तौर पर इतने मजबूत नहीं हुए हैं कि लोकतंत्र समझ सकें। मैने अपनी आंखो से देखा कि मेरे शहर नई मुंबई में यहां के बाहुबली विधायक विवेकानंद पाटिल के जन्मदिन के पोस्टरों में लोग "रायगड चा राजा" यानि रायगड का राजा लिख रहे हैं। अब तक राजा महाराजा वाली सोच के पिछलग्गू सामंतवादी परंपराओं को जिलाए रखे हैं। जो इन्हें राजा नही स्वीकारते उनकी तो हवा तंग करने के लिये पूरे शहर में लगे इनके विशाल होर्डिंग ही काफ़ी हैं जिनके आगे एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार के प्राणी की हलक सूख जाती है कि कितना विराट व्यक्तित्त्व है यही सामाजिक संरक्षण दे सकता है और वो भी अनचाहे उसी धारा में शामिल हो जाता है। ये भी साला एक किस्म का बेहद हरामीपन से भरा आतंकवाद है कि जन्मदिन पर लगाए गय होर्डिंग्स का मैंने मूल्यांकन करा(जितना मैं देख सका) तो वो पच्चीस लाख से ऊपर थे। जनता ये पैसे एकत्र करके सड़क क्यों नहीं बनवा लेती या गटर की समस्या हल क्यों नहीं कर लेती? नहीं करेगी, जनता डरी हुई है इन नराधमों के आतंक से........ क्योंकि ये "केन्द्रीय व्यापार संकुल बेलापुर" यानि बेलापुर सी.बी.डी. का नाम बदलवा कर " विवेकानंद नगर रखाने के लिये उत्पात करते हैं बसों की दिशा पट्टिकाओं पर जबरन नाम लिख देते हैं और इनका कुछ नहीं होता तो जनता इनसे क्यों न आतंकित रहे...... ये भी आतंकवादी हैं।
जय जय भड़ास

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