अभी अभी पता चला है -मै भड़ास वासियो को खरीद सकता हु

अनूप मंडल से करबद्ध निवेदन है कि अमित जी ने आपके समक्ष जो बातें रखी हैं उन्हें व्यवहारिक तरीके से यदि सामने लायी जाएं तो ये एक अत्युत्तम विकल्प है। आप इस बात का स्पष्टीकरण अवश्य करें कि आपने जिन शब्दों के आपत्तिजनक अर्थ बताए हैं उनका आधार कौन सा शब्दकोश है और किसने लिखा व कहां से प्रकाशित हुआ है। यदि आपके अनुसार जैन फेरबदल करवाने में माहिर हैं और शब्दकोशों के शब्दों में हेराफेरी कर देते हैं तो इस बारे में ठोस प्रमाण भड़ास के मंच पर लाइये ताकि आपकी बात की पुष्टि हो सके। भाषा व उसके व्याकरण में उलझ कर मुख्य मुद्दा जिसमें कहा गया था कि जैन राक्षस होते हैं वो तो कहीं गुम होता प्रतीत हो रहा है। मेहरबानी करके सभी बातों को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत करें।





दीनबन्धु -------- मेहरबानी करें अनूप मंडल के भाई-बंधु कि अगली पोस्ट में जरा इन बातों को साफ़ कर दें जो अमित भाई के सवाल हैं या जो मुनेन्द्र भाई ने कहा है। यदि आप अपनी बातों को बिना प्रमाण के रखेंगे तो सब हवाहवाई हो कर रह जाएगा। जरा ठोस बात रखें

जय जय भड़ास









June 20, 2009 12:29 PM

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Blogger रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

बात तो सही है,

केवल बकार्चुदई करने से काम नहीं चलने वाला है,

तथ्यों के साथ पुष्ट बातें रखें,

जय जय भड़ास

June 22, 2009 7:28 आम

यदी कोई भी अनूप बण्डल को पढने के बाद उन पर कोई भी टिपण्णी करेगा तो वो उसे बिका हुआ बतायेगे

यदि अमित जैन या महावीर सेमलानी से कुछ पैसा लेकर भी इनके सहकार्य के लिये खड़े हो गये हैं आप तो भी स्वागत है

अनूप बण्डल (मंडल) ने कहा है वो ख़ुद उन पर ही सही बैठता है


शरीर की उम्र बढ़ने और दिमागी उम्र बढ़ने में कभी कभी तारतम्य गड़बड़ा जाने से आपको पच्चीस-तीस साल के ऐसे मानसिक विकलांग बच्चे मिल जाएंगे जिनकी मेंटल एज मात्र तीन या चार साल रहती है।



लगता है अनूप बण्डल सिर्फ़ और सिर्फ़ अनर्गल पर्लाप ही करना जनता है / अब शायद रजनीश भाई की बारी है







6 comments:

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

भाई अमितजी

आपके विचारो को मे लगातार पढ रहा हू। भाई रुपेशजी ने भी पहल कर अर्नगल बाते करने वालो से विषयो को ठोस प्रमाण सहित रखने कि बात कही, जो स्वागत योग्य है। आपने बहुत जगह जैन घर्म के सही तथ्य रखे है। पर तार्किक बाते करने वालो कि कमी महसुस होती है। गाली गलोज वो व्यक्ति करता है जिसके पास पक्ष रखने के लिऐ शब्द नही होते। जिस धर्म के लोग गालियो से अपश्ब्दो से, तथ्यहीन बातो से, अपनी विचार धारा दुसरो पर थोपने का प्रयास करता है उसका धार्मिक ज्ञान चरित्र एवम पृष्टभूमि अज्ञात है। अगर गाली देने से कोई चोर या सहुकार बन जाऐ तो फिर यह रास्ते तो सभी के लिऐ खुले है।अरविन्दजी ने भी सही कहा तथ्यहीन बातो का फायदा नही।



कुछ जानकारी जो मैने कही से पढी उसके मुताबिक

लोग यह मन से निकाल दें कि जैन धर्म हिन्दू धर्म की एक शाखा है। जैन धर्म प्राचीन है। मसलन कृष्ण के चचेरे भाई जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ थे।

॥॥॥॥॥॥॥

जेन (zen) को झेन भी कहा जाता है। "जिन" इसका शाब्दिक अर्थ 'ध्यान' माना जाता है। यह सम्प्रदाय जापान के सेमुराई वर्ग का धर्म है। सेमुराई समाज यौद्धाओं का समाज है। इसे दुनिया की सर्वाधिक बहादुर कौम माना जाता था।

जेन का विकास चीन में लगभग 500 ईस्वी में हुआ। चीन से यह 1200 ईस्वी में जापान में फैला। प्रारंभ में जापान में बौद्ध धर्म का कोई संप्रदाय नहीं था किंतु धीरे-धीरे वह बारह सम्प्रदायों में बँट गया जिसमें जेन भी एक था।

॥॥॥॥॥॥॥॥॥।

धर्म के मुख्यतः दो आयाम हैं। एक है संस्कृति, जिसका संबंध बाहर से है। दूसरा है अध्यात्म, जिसका संबंध भीतर से है। धर्म का तत्व भीतर है, मत बाहर है। तत्व और मत दोनों का जोड़ धर्म है। तत्व के आधार पर मत का निर्धारण हो, तो धर्म की सही दिशा होती है। मत के आधार पर तत्व का निर्धारण हो, तो बात कुरूप हो जाती है।
उस बात को बताने के लिए ही संत इस धरती पर आता है। स्वामी विवेकानंद जी भी आए। और ये याद दिलाने के लिए आता है संत कि तुम कौन हो? 'अमृतस्य पुत्राः।' तुम राम-कृष्ण की संतान हो। तुम कबीर और गुरुनानक की संतान हो। तुम बुद्ध और महावीर की संतान हो। तुम क्यों दीन-हीन और दरिद्र जैसा जीवन जी रहे हो? क्यों अशांत हो, क्यों दुःखी हो? अपना स्वरूप हम भूल गए हैं। करीब-करीब ऐसे ही हम जीवन जीते हैं अपने वास्तविक स्वरूप को भूलकर।

इस जीवन की कितनी गरिमा है। इस जीवन की कितनी क्षमता है। अनंत आनन्द का खजाना, जो हमारे भीतर है, उसकी ओर हम पीठ करके जीते हैं। महर्षि नारद की तरह फिर कोई संत आता है हमारे बीच। कभी बुद्ध, कभी महावीर, कभी कृष्ण, कभी राम, कभी गुरुनानक, कभी गुरु अर्जुनदेव, कभी दादू, कभी दरिया, कभी रैदास, कभी मीरा, कभी सहजो, कभी दया बनकर आता है और हमसे कहता हैं कि चलो! उस मानसरोवर को चलो, जहाँ से तुम आए हो।
जब सामने वाला व्यक्ति गाली देता है, खराब व्यवहार करता है और अपनी गलत आदतों को नहीं छोड़ता, चाहो तो उसे लाख बार समझाओ। अब समझदारी इसी में है कि अपने अच्छे व्यवहार से उसे समझाएँ। यदि वह अपनी खराब आदतें नहीं छोड़ता तो हम अपनी अच्छी आदतों को क्यों छोड़ें? सामने वाला कैसा भी हो, हमें अपने आचरण, व्यवहार, नम्रता कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
सभी बन्घुओ से मेरा निवेदन कि भाषा एवम शब्दो कि बजाऐ ठोस प्रमाण सहित बाते करे। सम्मान पुर्वक अपनी बाते रखे। भाई रुपेजी से भी मेरी विनती है कि इस और सकारात्मक पहल करेगे।

जय जिनेन्द्र
महावीर बी सेमलानी

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

रजनीश भाई का ये कमेंट कब और किस पोस्ट के प्रसंग में है जरा ये लिखें ताकि ऐसा भ्रम न हो कि शायद माडरेटर कहीं पक्षपात कर रहे हैं। चूंकि धर्म का विषय आस्था से संबद्ध है हम उसमें तर्क नहीं कर सकते इसलिये मैं भी अब तक तटस्थ ही रहा इस विषय पर वरना मुझ पर आरोप लगा दिया जाता कि अब तो सुअर जैसे पशु भी देवताओं और राक्षसों के बीच में टिप्पणी देने आने लगे। मैं फिर महावीर सेमलानी जी से निवेदन करूंगा कि जो कत्लखाने की दो तस्वीरें प्रकाशित करी गयी थीं उस विषय पर कुछ बोलें दोनो तस्वीरों के साथ सवाल भी थे
जय जय भड़ास

B@$!T ROXX said...

अभी अभी पता चला है -मै भड़ास वासियो को खरीद सकता हु
kya keemat hai bhadasiyo ki?

दीनबन्धु said...

बोले...बोले.. भाई अब तो बोले। महावीर सेमलानी जी अपने हिंसक प्रतीक टाइगर को लेकर प्रकट हुए है सारे कुत्ते,सुअर वगैरह सावधान हो जाएं कान पूंछ फटकार कर भागने के लिये। ये महाराज अब भी उन तस्वीरों के बारे में नहीं बोल रहे हैं,जब अमित भाई ने अनूप मंडल की बातों से खिसिया कर उनके विद्रूप प्रतीकात्मक कार्टून बनाए थे और बाद में हटा दिये तब भी ये टिप्पणी रूप में आए थे अमित से पूछने कि पोस्ट क्यों हटा दी अमित? अब जब अमित भाई ने देसी शब्द "गांड" का प्रयोग कर लिया खिसियाहट में तब ये न बोले। मेरा न तो जैन धर्म से कोई निजी विरोध है न ही मैं अनूप मंडल से कोई सरोकार रखता हूं लेकिन अमित भाई की "पुस्तैनी काम" करने की सलाह और महावीर सेमलानी जी के कूटनीतिक रवैये ने मुझे बाध्य करा है कि मैं भी अपने विचार रखूं। जब भड़ास पर लिखने के लिये सदस्यता की बाध्यता समाप्त हो चुकी है तो महावीर सेमलानी क्यों नहीं अपने विचार लिखते? तब भी इन्हें प्रकट होना चाहिये था जब मुसलमानों को अमित ने बीच में अनावश्यक ही घसीटा था तब किस पथ पर चले गए थे?
जय जय भड़ास

अमित जैन (जोक्पीडिया ) said...

दीनबंधु भाई आप को मेरे देसी सब्द को पर्योग करने पर बड़ी खीज उत्पन्न हो गई है , पर आप ने ही कहा था मन् की बात मन मे नहीं रखनी cahaye ,यदि मैंने अपनी किसी पोस्ट को हटा लिया तो आप को लग रहा है की मै खिसिया गया / पर बंधू आप चाहते है की विरोध करने के लिए हमे सिर्फ हर वक्त सयम से ही चलना होगा , cahae कोई हमारे धर्म को कुछ भी कहे , अब आप कहेगे हमारे धर्म से मतलब , , भई जब pustani काम की बात आई तो आप सामने आ गए अपने जुलाहे धर्म का पालन करते हुए , जब मुस्लिम धर्म की बात हुई तो मोहम्मद उमर रफ़ाई आ गए तुंरत अपने धर्म की हिमायत मै , क्यों भाई यदि सब अपना अपना धर्म के लिए तुंरत आ सकते की तो मेरे आने मे आप को एतराज क्यों है/ क्या अभी तक अनूप मंडल ने कोई भी विश्वस्त परमान अपनी बातो के लिए दिया है /
डॉ साहब रजनीश भाई का ये कमेंटJune 22, 2009 7:28 am को ----- अनूप मंडल का बन गया बण्डल भाग -३ ---- से पहले वाली पोस्ट मे किये है आप वहा से इस बात की पुस्ती कर सकते है , वासी वो पूरी पोस्ट कमेन्ट के पहले लिखे हुई है

दीनबन्धु said...

अमित भाई आप काफ़ी परेशान है वरना ध्यान देते कि मैं खुद को चमार बता रहा हूं जुलाहा नहीं:)
मैं आपकी मनोदशा समझ रहा हूं लेकिन क्या कोई और जैन भड़ास नहीं देखता है जो आपके साथ खड़ा रह कर आपको "अहिंसक" ही बनाए रखे वरना आप अपने धर्म के पक्ष में वकालत करते करते वाकहिंसा पर पहुंच जाते हैं पता नहीं ऐसा जाने में होता है या अंजाने में। आप अनूप मंडल को ललकारे रहिये मैं सिर्फ़ इंसानियत के साथ हूं जो न हिंदू है न मुसलमान और न ही जैन है।
जय जय भड़ास

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