51 घंटे लंबी मुठभेड़ के बाद मारा गया डाकू



=> रात भर सोहर गायेन, सवेरे देखें तो बेटवा के औजारे नाही/खोदा पहाड़ निकली चुहिया । 500 पुलिस वाले, 51 घंट लंबी मुठभेड़, चार पुलिस वाले शहीद हुए और दर्जन भर जख्मी हुए और मारा एक डकैत । शाबाश ।

बेवजह मार डाला बेचारे घनश्याम केवट को । इतने काबिल और होनहार डकैत को जिदा पकड़ना चाहिए था । जो डाकू 51 घंटे तक अकेले एक मामूली राइफल से 500 पुलिस के जवानों को नचा सकता था वो उन्हीं पुलिस वालों और एन.एस.जी. के कमांडो को कमांडो ट्रेनिंग भी तो दे सकाता था ताकि फिर कभी मुंबई हमलों जैसे बड़े आतंकी हमले देश को न भुगतने पड़ें । इतने होनहार, वीर, लड़ाके को बेवजह मार गिराया । डाकू तो हर कहीं भरे पड़े हैं । थानों में, प्रशासन में, शिक्षा व्यवस्था में, स्वास्थ्य विभाग में, विधान सभाओं, ससंद में, कहां नहीं है डाकू । हर जगह, हर विभाग में, हर स्तर का डकैत आपको मिल जायेगा । मेरा सरकार को एक अमूल्य सुझाव है, कृपया गौर फरमायें, चंबल, चित्रकूट और दूसरी डाकूओं की नर्सरी वाले इलाकों से मंजे-मंजाये डाकू शार्ट सर्विस कमीशन पर भर्ती करलें और इनको पाकिस्तान एक्सपोर्ट कर दें अपनी बहादुरी दिखाने के लिए । पाजी पड़ोसी हमें आये दिन फिदाईन लड़ाके भेंट करता रहता है । उसको भी हमारी तरफ से प्रेम पूर्वक दिये गये तोहफों पर नाज़ होना चाहिए कि नहीं ।

3 comments:

दीनबन्धु said...

कृष्ण मोहन भइया मैं तो आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूं। जिसे जो सोचना है सोचे पर हम तो घनश्याम केवट के फैन हो गये और उनको मन ही मन श्रद्धांजलि दे डाले कि हे वीर! फिर इसी धरती पर जनम लो जल्दी से और.....
जय जय भड़ास

अमित जैन (जोक्पीडिया ) said...

हा हा हा ... कमाल की बात की है आपने

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

एकदम सही बात,
सटीक भड़ास.
हमारे निकम्मेपन की ये इन्तेहा ही तो है.
जय जय भड़ास

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