दर्द कुछ एसा भी होता है

ख्वाबों और ख़्यालों का चमन सारा जल गया,
ज़िंदगी का नशा मेरा धुआ बन कर उड़ गया…
जाने कैसे जी रहे है, क्या तलाश रहे है हम,
आँसू पलकों पर मेरी ख़ुशियों से उलझ गया…

सौ सदियों के जैसे लंबी लगती है ये ग़म की रात,
कतरा कतरा मेरी ज़िंदगी का इस से आकर जुड़ गया…
मौत दस्तक दे मुझे तू, अब अपनी पनाह दे दे,
ख़तम कर ये सिलसिला, अब दर्द हद से बढ़ गया…

2 comments:

Mrs. Asha Joglekar said...

अरे इतना गुस्सा न न हौसला रखिये सब ठीक होगा। वैसे कविता अचछी है ।

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

सुंदर कविता
जारी रखिये
बधाई
जय जय भड़ास

Post a Comment