भारत के कुछ राम काव्य


आर्य धर्म के रक्षक, मानवता के त्राता, प्रजाप्राण लोकनायक श्रीराम भारत-भूमि के कण-कण में रमे हुए हैं। समय की विषम एवं दुराक्रांत स्थितियों ने श्रीराम को उत्पन्न किया, तब से लेकर हर युग के संक्रांति काल में उनका आदर्श और प्रेरक जीवन कवि-प्रतिभा के गर्भ से पुनः-पुनः अवतीर्ण होकर जनमानस को सत्पथ दिखलाता आ रहा है।

यह माना जाता है कि आदिकवि महर्षि वाल्मीकि से अनेक शताब्दियों पूर्व ही रामकथा को लेकर आख्यान-काव्य की रचना होने लगी थी किंतु, उस साहित्य के अप्राप्य होने से वाल्मीकि कृत रामायण को ही प्राचीनतम उपलब्ध रामकाव्य माना जाता है। इसकी रचना संभवतः ईसा-पूर्व चौथी शताब्दी के अंत में हुई। अधिक समय तक मौखिक रूप में प्रचलित रहने के कारण इसका रूप स्थिर नहीं रह सका और रामकथा के प्रारंभिक विकास के साथ-साथ इसमें परिवर्तन व परिवर्धन होता रहा। अनेक विद्वानों का यह भी मत है कि वाल्मीकि ने चारणों के गाथागीति के रूप में लोक प्रचलित वीराख्यान को ही प्रबंध का रूप देकर रामायण महाकाव्य की रचना की।

रामकथा और रामकाव्य के नायक राम के व्यक्तित्व में कितनी ऐतिहासिकता और कितनी कवि-कल्पना है, यह कहना बहुत कठिन है। परंतु, इस बात मे कोई संदेह नहीं है कि वाल्मीकि के महाकाव्य 'रामायण' ने ही सर्वप्रथम महामानव राम को लोकनायकत्व प्रदान किया। राम का जो गौरवपूर्ण चरित्र जगविख्यात है, उसका श्रेय महर्षि वाल्मीकि को ही है। उनके बाद रामकाव्य की परंपरा को आगे बढ़ाया जयदेव, कालिदास और तुलसीदास आदि महान कवियों ने। उन्होंने वाल्मीकि रामायण की ही कथावस्तु का अपनी-अपनी शैली में उपयोग कर रामोपाख्यान प्रस्तुत किए। हिंदी और संस्कृत साहित्य की इस रामकाव्य परंपरा ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र को और अधिक व्यापक बनाया।

रामकथा ने प्रत्येक कवि को प्रभावित किया है। इसीलिए आज विश्व की लगभग प्रत्येक भाषा में रामकथा उपलब्ध है। विभिन्न आधुनिक भारतीय भाषाओं का प्रथम महाकाव्य या सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य ग्रंथ प्रायः कोई रामायण ही है। इसके अतिरिक्त बहुत-सी अन्य रचनाएँ भी रामकथा से संबंधित है। कुछ महत्वपूर्ण अहिंदी भाषी रामकाव्यों का संक्षिप्त विवरण यहाँ प्रस्तुत है।




पउम चरिउ

लगभग छठी से बारहवीं शती तक उत्तर भारत में साहित्य और बोलचाल में व्यवहृत प्राकृति की उत्तराधिकारिणी भाषाएँ अपभ्रंश कहलाईँ। अपभ्रंश के प्रबंधात्मक साहित्य के प्रमुख प्रतिनिधि कवि थे- स्वयंभू (सत्यभूदेव), जिनका जन्म लगभग साढ़े आठ सौ वर्ष पूर्व बरार प्रांत में हुआ था। स्वयंभू जैन मत के माननेवाले थे। उन्होंने रामकथा पर आधारित पउम चरिउ जैसी बारह हज़ार पदों वाली कृति की रचना की। जैन मत में राजा राम के लिए पद्म शब्द का प्रयोग होता है, इसलिए स्वयंभू की रामायण को 'पद्म चरित' (पउम चरिउ) कहा गया। इसकी सूचना छह वर्ष तीन मास ग्यारह दिन में पूरी हुई। मूलरूप से इस रामायण में कुल 92 सर्ग थे, जिनमें स्वयंभू के पुत्र त्रिभूवन ने अपनी ओर से 16 सर्ग और जोड़े। गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरित मानस' पर महाकवि स्वयंभू रचित 'पउम चरिउ' का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है।




असमी रामायण

लगभग सातवीं शताब्दी में असमिया साहित्य के प्रथम काल के सबसे बड़े कवि माधव कंदलि ने कछारी राजा महामाणिक्य के प्रोत्साहन से 14 वीं शताब्दी में वाल्मीकि रामायण का सरल अनुवाद असमिया छंद में किया। एक गीति कवि दुर्गावर ने १६वीं शती में लौकिक वातावरण में गेय छंद में गीति-रामायण की रचना की। असमिया साहित्य के द्वितीय काल (वैष्णवकाल में) माधव कंदलि द्वारा अनूदित रामायण का कुछ अंश खो जाने के कारण इस काल के एक प्रमुख कवि और साहित्यकार शंकरदेव ने उत्तर कांड को पुनः अनूदित किया। शंकरदेव ने ही 'रामविजय' नामक नाटक की भी रचना की।



उड़िया रामायण

उड़िया-साहित्य के प्रथम प्रतिनिधि कवि सारलादास ने 'विलंका रामायण' की रचना की। अर्जुनदास ने 'राम विभा' नाम से रामोपाख्यान प्रस्तुत किया। परंतु, कवि बलरामदास द्वारा रचित रामायण उड़ीसा का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ माना जाता है।

बलरामदास की 'जगमोहन रामायण' अपने अनूठे प्रसंगों के लिए भी विख्यात है। उनकी यह कृति 'दक्षिणी रामायण' भी कहलाती है। इसके बाद १९वीं शती में आधुनिक युग में फकीर मोहन सेनापति ने 'रामायण' का पद्यानुवाद किया।



कन्नड़ः पंप रामायण

दक्षिण भारत की पाँच भाषाओं में से एक है- कन्नड़। कन्नड़ साहित्य के सन 950 से 1150 तक के पंप युग में एक अत्यंत प्रसिद्ध कवि हुए नागचंद्र, जिन्होंने 'पंप भारत' का अनुसरण करते हुए रामायण की रचना की। रामचंद्रचरित पुराण अथवा पंप रामायण कन्नड़ की उपलब्ध रामकथाओं में सबसे प्राचीन है।

तत्पश्चात 15वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के 'कुमार व्यास काल' में नरहरि अथवा कुमार वाल्मीकि नामक एक कवि ने वाल्मीकि रामायण के आधार पर तोरवे रामायण की रचना की। कन्नड़ साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति के रूप में यह आज भी जानी जाती है। इसी युग की अंतिम उन्नीसवीं शती में देवचंदर नामक एक जैन कवि ने 'रामकथावतार' लिखकर जैन रामायण की परंपरा को आगे बढ़ाया। इस शती के अंत में मुद्दण नामक एक अत्यंत सफल कवि ने अद्भूत रामायण नामक सरस काव्य-कृति की रचना की।



कश्मीरी रामायण

तेरहवीं सदी में कश्मीरी भाषा में साहित्य सृजन आरंभ हुआ। सन 1750 से 1900 के मध्य के प्रेमाख्यान काल में प्रकाश राम ने रामायण की रचना की। 18वीं शती के अंत में दिवाकर प्रकाण भट्ट ने भी 'कश्मीरी रामायण' की रचना की।



गुजराती रामायण

14वीं शती में आशासत में गुजराती में रामलीला विषयक पदावली की रचना की। फिर 15वीं शती में भालण ने सीता स्वयंवर अथवा राम-विवाह नामक रामकाव्य प्रस्तुत किया। गुजराती साहित्य में यही प्राचीनतम रामकाव्य माने जाते हैं। वर्तमान में समूचे गुजरात में १९वीं शताब्दी की गिरधरदास 'रामायण' सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रिय मानी जाती है।



तमिल रामायण

तमिल भाषा द्रविड़ भाषा परिवार की प्राचीनतम भाषा मानी जाती है और महर्षि अगस्त्य इसके जनक कहे जाते हैं। तमिल साहित्य के प्रबंधकाल में आज से लगभग 12 सौ वर्ष पूर्व चक्रवर्ती महाकवि कंबन हुए, जिन्होंने 'कंब रामायण' नामक प्रबंध काव्य की रचना की। कुछ विद्वान कंबन और उनकी रामायण को १२वीं शताब्दी का मानते हैं और यह भी माना जाता है कि महाकवि कंबन गोस्वामी तुलसीदास से कम से कम चार सौ वर्ष पूर्व हुए थे।




तेलुगू साहित्य के दूसरे पुराण युग (सन 1050 से १1500 तक) में सबसे पहले रंगनाथ रामायण (13वीं शती) और फिर भास्कर रामायण(१४वीं शती) की रचना हुई। भास्कर रामायण को तेलुगू का सबसे कलात्मक रामकाव्य माना जाता है। तेलुगू साहित्य के स्वर्ण युग (प्रबंध युग) में अनुवादों की परंपरा रुक गई और कवियों की रुचि मौलिक प्रबंध लिखने की ओर बढ़ी। उसी क्रम में तेलुगू की चार महिला रामायणकारों ने अपनी-अपनी कृतियाँ प्रस्तुत कीं। ये थीं- मधुरवाणी की 'रघुनाथ रामायण', शीरभु सुभद्रमांबा की 'सुभद्रा रामायण', चेबरोलु सरस्वती की 'सरस्वती रामायण' तथा मोल्ल की 'मोल्ल रामायण'। 16वीं शताब्दी में मोल्ल नामक कुम्हारिन द्वारा रचित 'मोल्ल रामायण' जनसाधारण में अत्यधिक लोकप्रिय है।

तेलुगू साहित्य की सर्वप्रथम कवयित्री आतुकूरि मोल्ल तुलसीदास से लगभग 200 वर्ष पूर्व हुई थीं। अपने गुरु गोपवरम के श्रीकंठ मल्लेश की कृपा से मोल्ल कविता करना सीख गई। राज्याश्रय के लिए शिव और राम भक्त मोल्ल के पास भी निमंत्रण आया था परंतु उन्होंने उसे विनयपूर्वक अस्वीकार कर दिया। मोल्ल कहती थीं कि वे तो प्रभु रामचंद्र के कहने से उनका गुणगान करती है और उसे उन्हीं के चरणों में समर्पित कर देती हैं। 'मोल्ल रामायण' का अब हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है।



पंजाबी रामायण

सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी न केवल धर्म गुरु थे वरन वे एक महान संत, योद्धा और कवि भी थे। उनके द्वारा रचे गए कुल 11 ग्रंथों में से एक 'रामावतार' को गोविंद रामायण कहा जाता है। पंजाबी भाषा की यह महान रचना संभवतः सन 1698 में पूर्ण हुई थी। गुरु जी की रामकथा में धर्म युद्ध के घाव का भाव ही खूब उजागर हुआ है। 'गोविंद रामायण' से कुल 864 छंद है जिनमें 400 से अधिक छंदों में केवल यूद्ध का ही वर्णन है।


बंगाली रामायण

तुलसीदास से एक शताब्दी पूर्व बंगला के संत कवि पंडित कृत्तिवास ओझा ने 'रामायण पांचाली' नामक रामायण की रचना की। 15वीं शताब्दी में रचित यह रामायण बंगला जनजीवन का कंठहार है। पाँच साल में उन्होंने अपने इस अमर ग्रंथ को पूरा किया।

बंगाली रामकाव्य की कुछ अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं- नित्यानंद आचार्य (अद्भुताचार्य) की आश्चर्य रामायण, कविचंद्र कृत अंगद रायबार, रघुनंदन गोस्वामी कृत राम रसायन तथा चंद्रावती की रामायण गाथा। बंगाल के एक क्षेत्र विशेष में चंद्रावती की रामकथा के पद बेहद लोकप्रिय हैं।



मराठी रामायण

महाराष्ट्र में पैठण नामक स्थान में जन्मे संत एकनाथ गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे। उन्होंने काशी में तुलसीदास जी से भेंट की थी। उन्होंने 'भावार्थ रामायण' की रचना की थी। जिसे वह पूर्ण नहीं कर पाए और इसे पूरा किया उनके शिष्य गाववा ने।



मलयालम रामायण

चौदहवीं शताब्दी में 'रामायण' के युद्ध कांड की कथा के आधार पर प्राचीन तिरुवनांकोर के राजा ने रामचरित नामक काव्य ग्रंथ की रचना की। इसे मलयालम भाषा का प्रथम काव्य ग्रंथ माना जाता है। इसी शती में कवि राम प्पणिकर ने गेय छंदों में 'कणिश्श रामायण' की रचना की। इसके बाद रामकथा-पाट्ट रचा गया। फिर वाल्मीकि रामायण के अनुवाद के रूप में 'केरल वर्मा रामायण' की रचना हुई। मलयालम भाषा के सर्वाधिक लोकप्रिय राम काव्य के रूप में सन 1600 के लगभग एजुत्त चन द्वारा 'अध्यात्म रामायण' का अनुवाद प्रस्तुत किया गया।

अहिंदी भाषी रामकाव्य में 'रावणवहो' (रावण वध) महाराष्ट्री प्राकृत भाषा का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसकी रचना कश्मीर के राजा प्रवरसेन द्वितीय ने की थी। प्राकृत साहित्य की इस अनुपम रचना का संस्कृत भाषा में सेतुबंध के नाम से अनुवाद हुआ।



नेपाली रामायण

१९वीं शताब्दी में कवि भानुभट्ट ने नेपाली भाषा में संपूर्ण रामायण लिखी। इस रामायण का आज नेपाल में वही मान है, जो भारत में तुलसीकृत रामचरितमानस का है।



अन्य रामायण

  • इस बात के प्रमाण भी उपलब्ध हैं कि मुगल शासनकाल में रामायण का फारसी भाषा में अनुवाद हुआ। राम कथा साहित्य की एक प्रसिद्ध रचना 'तोरवे रामायण' है, जिसकी रचना १६वीं शती में तोरवे नामक ग्राम के निवासी नरहरि द्वारा की गई।

यदि इन सब को भी झुठला सकते हो तो फ़िर बताओ हम तुम्हरे आत्मा की शान्ति के लिए और जानकारी आप को दे देगे - / क्या ये सारे रामायण भी जैनियो ने ही लिखी है , या इन सब मे मौजूद विरोधाभाष भी जैनियो ने ही किया है ?

आपका भाई -अमित जैन ...........:)

8 comments:

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

भाई अमितजी!
अति सुन्दर विवेचना कि है रामायण कि। वास्तव मे रामायण भगवान श्री रामजी कि जीवन गाथा है।

इस बात मे कोई संदेह नहीं है कि वाल्मीकि के महाकाव्य 'रामायण' ने ही सर्वप्रथम महामानव राम को लोकनायकत्व प्रदान किया। राम का जो गौरवपूर्ण चरित्र जगविख्यात है,

आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने भगवान श्री रामजी का मर्यादापुरुषतम वाळी छवी को लोगो मे रखी जिससे लोग मर्यादाओ मे रहकर उच्च आदर्ष स्थापित करे। पर भगवान राम के बाद फिर कोई राम इस देश मे या ससार मे नही आया।

रामायण कथा समय अनुशार धर्मो एवम धर्मगुरुओ के प्रवचन मे आदिकाल से समाहित है। सबने अपने अपने मतव्य रखे है रामायण के सन्दर्भ मे। किसी धर्माचार्य रामजी को मर्यादापुरुष कहा तो किसी ने भगवान कहा। दोनो बातो मे फर्क क्या है? अपने अपने मतव्यो को सुविधाअनुसार ऋषीमुनियो ने रामजी के बारे मे महर्षि वाल्मीकि कि रामायण से हटकर बाते की।
जैन रामायण का इतिहास आदिकाल से। इसमे भगवान महावीर के समय से पुर्व भी जैन रामायण का उल्लेख मिलता है। वर्तमान मे विभिन्न घर्म गुरु टिवी मे रामायण कथा करते है, सभी मे भिन्नता है। अब रामानन्द सागर की रामयण और अन्य प्रडियूशर कि रामायण मे भी भिन्नता है।
अर्थ यह है कि कथा से ज्यादा आवश्यक है हम भगवान राम के मर्यादापुरुषोतम वाले चरित्र को जीवन मे अपनाए। झुट नही बोले। चोरी ना करे, गालिया ना बोले,अपने धर्म को उपर बताकर दुसरे धर्म को निचा ना दिखाए। वगौहरा वगैहरा। रामजी और रामायण हम सभी धर्मो के प्रति सम्मान रुप से सम्माननिय है।
सस्कृति वही शिखर छुती है जो समाज के सस्कारो मे जीवन्त होती है। दुध सा उजला सगमरमर का प्रसाद तभी भव्य है कि उसमे कोई नेक निर्मल आदमी बसता हो। धर्म इतिहास सस्कृति एवम सभ्यता का गोरव हर देश , जाति एवम समाज को होता है। वेद, कुरान, गीता, आगम, एवम बाइबिल उन्ही आदर्शो के प्रतिक एवम प्रतिविम्ब है, जिन्हे हमारे पुरखो ने कभी जीया था।

अमित जैन (जोक्पीडिया ) said...

भाई महावीर जी नमस्कार . बंधू ये अनूप नाम का (--------) वासी न जाने क्यों सिर्फ बैर और वैमनस्य बढ़ाने वाली ही बाते कर रहा है , इस को शायद ये नहीं पता की यदि ये कोई जानकारी गलत और तोड़ मरोड़ कर, पेश कर ,के यहाँ भडास पर सहनुभूति ले भी लेगा तो , फिर अगले ही दिन जब उस बात की सच्चाई जब सब के सामने आ जायेगी तो जानकर भडासी इस का बैंड बज्जा देगे / ये ६ - ७ दिन के लिए गायब हो जायेगा , फिर कोई नया पत्रा ले कर पुराणी बातो को छोड़ कर नया सुर गाने लगेगा

अजय मोहन said...

मैं पता नहीं क्यों किसी नतीजे पर नहीं आ पा रहा हूं लेकिन अनूप मंडल ने जो कहा कि अमित की पोस्ट पर कमेंट करने वाले लोग अपने ब्लागर एकाउंट के द्वारा कमेंट नहीं कर रहे हैं ये बात शत-प्रतिशत संदिग्ध प्रतीत होती है जो कि उन्होंने अपनी पोस्ट के बाद स्वयं ही तमाम नामों से कमेंट देकर स्पष्ट करा है कि क्या चालाकी करी जा सकती है।
दूसरी बात महावीर सेमलानी जी अब तक सबसे पहले करे गये सवाल पर अटल चुप्पी साधे हुए हैं ये बात तो वही बता सकते हैं कि क्या कारण है।
तीसरी बात जो मैं साफ़ कर सकता हूं कि भड़ास पर भड़ासी किसी को सहानुभूति देकर पुचकारने से तो रहे इसलिये अमित जी की आशंका निर्मूल है।
चौथी और सबसे महत्त्वपूर्ण बात जो दिख रही है वो ये कि इस महाबहस के चलते बाकी लोगों ने तो भड़ास पर चूं-चां करना ही बंद कर दिया है। महावीर सेमलानी जी से अमित क्यों नहीं कहते कि वे उत्तर दें दुनिया भर के तर्क जुटा कर अनूप मंडल को चूतिया साबित करने के प्रयासों में ऊर्जा व्यय न करें, क्या अमित एक पोस्ट महावीर जी से इस विषय पर लिखने का आग्रह कर सकते हैं? जिससे सारी बातें साफ़ हो जाएंगी।
देश और समाज में और भी समस्याएं है जिनपर हम सार्थक कार्य कर सकते हैं एक दूसरे की बजाना बंद करिये या फिर नतीजे पर आने के कदम उठाइये।
जय जय भड़ास

दीनबन्धु said...

अनूप मंडल से एक सवाल क्या आप के अनुसार अमित भाई की बतायी गयी पउम चरित ही जैन रामायण है या आप किसी अन्य ग्रन्थ की बात कर रहे हैं जो आपको आपत्तिजनक जान पड़ता है? ये विवाद भड़ास का अबतक का सबसे उलझा मामला बनता जा रहा है क्योंकि महावीर सेमलानी उत्तर नहीं देते और न ही उनसे करे सवाल पर कोई प्रतिक्रिया देते हैं इसलिये सारी बातें संदिग्ध लगती हैं। अनूप मंडल के लोगों को आप चूतिया कहें या महाचूतिया लेकिन आप सभी भड़ासी खुद देख सकते हैं कि ये स्निग्धा म्रत्युन्जय नाम से कमेंट करने वाला मात्र एक पाखंड है क्योंकि इस ढक्कन को ये नहीं पता कि मैं भी इसके नाम और ब्लाग की लिंक देकर अब कमेंट कर सकता हूं जिसके तरीके का खुलासा अनूप मंडल ने बड़े ही सच्चे ढंग से करा है मैं अगली टिप्पणी इसी चूतिये के नाम से डाल कर आपको बताता हूं।
जय जय भड़ास

snigdha mrityunjay said...

मेरा नाम Snigdha Mrityunjay है और मैं अव्वल दर्जे का चूतिया किस्म का आदमी हूं जो बिना मामले की गम्भीरता को समझे ही मुंह मारने आ जाता हूं।

अमित जैन (जोक्पीडिया ) said...

अजय मोहन जी अनूप ने बताया की क्या चालाकी करी जा सकती है , क्योकि ये एक तकनिकी मामला है और मै इस में जानकारी नहीं रखता इसलिए इस विषय मे कुछ कहना मेरे लिए जल्दी बाजी होगा / मोहन जी क्या आप इस बात से सहमत है की सुमन जी पर आया दिल का दौरा किसी तंत्र विद्या द्वारा आया है ?या कही पर कोई भी पराकरतिक आपदा आती है तो वो तांत्रिक किर्याओ द्वारा ही आती है ?मै जो भी तर्क अनूप मंडल के लेख के विपक्ष मे दे रहा हु यदि उन मे से कोई भी तर्क आप को असंगत जान पड़ता है तो मुझे जरूर बताये , क्योकि यदि कोई व्यक्ति या समूह किसी गलत , निराधार बात का परचार करता है तो उस का तर्कसंगत रूप से विरोध होना ही होप्ता है ?रही बात किसी के मेरे पक्ष या विपक्ष मे कमेन्ट देने की , तो उस बात से मुदे की गंभीरता पर कोई सवाल नहीं लगाया जा सकता ? सिर्फ कंप्यूटर की , नेट की ब्लॉग की , तकनिकी बातो से मुख्य मुदे को गौण नहीं होना चाहए /अब तक सिर्फ एक सवाल जो उन की पहली पोस्ट मे किया गया था , वो उस सब्दकोश को बताये जिस मे जैन को बनिया , रक्सश इत्यादि सम्भोदन दिए गए है ?या कोई सबूत की किसी भी किताब मे कोई भी संशोधन जो जैन ने किये हो ?

दीन्भंधू जी सिर्फ एक सवाल है मेरा अनूप से की वो किसी ठोस सबूत के साथ बताय जो वो कहना चाहते है / सिर्फ बातो के पहाड़ को न खडा करे /

मनोज द्विवेदी said...

JAHAN TAK MERA MANANA HAI YE VIVAD SIRF AUR SIRF AHANKAR KI UPAJ..'AHAM BRAHMASMI' KI VICHARDHARA. KISI BHI DHARM KI PRASANGIKTA HAMARE AUR AAP JAISE LOGON KI DALILON SE RATTI BHAR NA TO KAM HOGI AUR NA HI BADH JAYEGI. ISLIYE KOSHISH YE KIJIYE KI APNE HATH TABHI TAK CHALAIYE JAB TAK ISKI PARIDHI ME KISI DUSRE KI NAK NAHI AA JATI.

अनोप मंडल said...

भाईसाहब अजय मोहन जी,दीनबन्धु जी,मनोज जी और अन्य सभी वे लोग जो हम दबा दिए गये लोगों की बातो पर प्रतिक्रिया कर रहे हैं भले ही निन्दा या आलोचना के रूप में क्यों न हो हम उनके आभारी हैं ये आभार अमित के लिए भी है कि वे उस समाज से हमारे सामने साहस पूर्वक आएं हैं जिसमें से अब तक किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जो कि वे अब तक करते आए हैं कि यदि विवाद करा तो मामला प्रकाश में आ जाएगा तो बेहतर है कि चुप्पी साधे रहो। हम अमित जी की कद्र करते हैं इसलिए उनके कहे पर हम अब धीरे-धीरे सारे तथ्य(मात्र तर्क नहीं) सामने लाएंगे जैसे कि आप सबने देख लिया कि जो आरोप लगाया गया था कि हेराफेरी करी जाती है वो तकनीकी अन्जानेपन की आड़ में दबा दिया गया लेकिन आगे भी बहुत है जो सामने लाया जाएगा कि किस तरह से अनेक धर्मों के ग्रन्थों में फेरबदल करी गयी है देवताओं आदि के चरित्र को दूषित बताया गया है ताकि हम सब उसी में भ्रमित होते रहें और ग्रन्थों के मूल संदेशों से वंचित रह जाएं। इसमें हमारा कोई अहंकार नहीं है मनोज भाई हम तो बहुत गरीब लोग हैं और अपनी औकात को भलीभांति स्वीकारते हैं। पुनः धन्यवाद
जय जय भड़ास
जय नकलंक
अनूप मंडल

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