दो दिन पहले की बात है कि मैं मुंबई के एक उपनगर बान्दरा में अपने काम से गयी तो देखा कि करीब १०० लोग नारेबाजी करते हुए एक सिनेमा घर के बाहर उसका पोस्टर काला कर रहे हैं। वैसे तो इस तरह की बातें मुंबई में अब आम हो चली हैं लेकिन मैं भी ठहरी भड़ासिन तो बस घुस गयी भीड़ में ये जानने के लिये कि आखिर क्या नौटंकी हो रही है। शरद पवार की पार्टी N.C.P. की बान्दरा शाखा के अध्यक्ष महोदय ने ये ड्रामा चला रखा था कि अभिषेक बच्चन और जान अब्राहम की फिल्म "दोस्ताना" समलैंगिक संबंधों को प्रोत्साहन दे रही है और भारतीय भोली जनता फिल्मों से ही सीख कर जीवन जीती है इसलिये इस फिल्म का प्रदर्शन रोका जाए ताकि हमारे युवा समलैंगिक बनने में गर्व न महसूस करने लगें। अब इन फट्टुओं को कौन बताए कि पोस्टर पलट कर विरोध नहीं करता है, अभी १३ तारीख को ही आजाद मैदान में करीब डेढ़ सौ "गे" और "लेस्बियन" लोगों ने समान कानूनी अधिकारों के लिये जब प्रदर्शन करा तब ये ’बंदर बहादुर’ उनकी फाड़ने क्यों नहीं गये क्या ये उन गये-गुजरे मनोयौनरोगियों से भी डरते हैं जो खुलेआम कह रहे हैं कि हमें समलैंगिक होने पर गर्व है और इसे कानूनी मान्यता दी जाए। अगर सचमुच इस "आई लव इंडिया" नामक N.G.O. चलाने वाले चिरकुटों में दम है तो इन लोगों का एक बाल भी उखाड़ कर दिखाएं।
जय जय भड़ास
3 comments:
समलैंगिकों से दुर्व्यवहार क्यो? उन्हें सामान्य रूप में क्यों नही लिया जा सकता
रौशन तुम्ही से दुनिया रौनक तुम्ही जहां की.....
सही बात है हम सब को मनोरोगियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिये। पागलपन या सनक को सामान्य रूप से स्वीकार लेना चाहिये तभी उसका इलाज हो सकता है।
गुरुदेव,
एनजीओ का काम ही है चिरकुट धंधे करके देसी-विदेशी संस्थाओं से पैसे उगाही करना, रही बात एनसीपी और राजनैतिक दल का तो, क्या एनसीपी क्या मनसे, मुंबई में लोकप्रिय पार्टी बनने का ये एक मात्र हथकंडा रह गया है.
लोगों की समस्याओं, किसानो की समस्या, बेकारी-बेरोजगारी, आत्महत्या सरीखे विषय पर कोई राजनितिक दल कुछ नही कर सकता आख़िर इनके बूते के बाहर की जो बात है, सत्ता लोलुपता ऐसा की लोगों की दुखतीरग यानी की संवेदना को दबा दो और बन जाओ सत्ताधारी,
वस्तुतः हमारे यहाँ के मुरख और बेजुबान नादान आम बस आम रहना और बनना जानती है भले ही उसे कोई भी चूस कर गुठली बना दे.
जय जय भड़ास
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