कल शाम केंद्रीय कमिटी की बैठक महाराष्ट्रा मामले पर थी, महाराष्ट्रा की राजनीति और स्थानीय सरकार एक बार फ़िर केंद्रीय सरकार के गले की हड्डी साबित हुई। जहाँ इस बैठक से महाराष्ट्र के मंत्रीगण नदारद थे वहीँ प्रेस से मिलने से परहेज करने वाले राज ठाकरे ने आनन् फानन में प्रेस कांफ्रेंस बुलाया और पहली बार अपने लाव लश्कर के साथ प्रेस के सामने उपस्थित भी। मगर ये संयोग नही था क्यौंकी जिस तरह से केंद्रीय मंत्रिपरिषद की बैठक में महाराष्ट्रा के मंत्री नदारद थे और उसके समाप्त होते ही राज की प्रेस से मिलिए का कार्यक्रम था नि:संदेह मौन स्वीकृती मराठी मंत्रियों की राज के प्रति थी। केंद्रीय कांग्रेसी सरकार के गले की हड्डी महारष्ट्र की देशमुख सरकार है यी साबित हो गयी, स्थानीय राजनीति की बलिवेदी पर कांग्रेस असफल और नाकाबिल देशमुख को नही चढाना चाहती है मगर संभावित चुनाव के कारण वैमनष्यता की राजनीति में कांग्रेस का मौन सहयोग प्रर्दशित हो गया। जरा राज के प्रेस सम्मलेन पर नजर डालिए.........
राज को छठ पूजा पूजा नही नौटंकी लगता है। इसके बावजूद आज वो पूजा के ख़िलाफ़ नही होने का ऐलान करते हैं और घोषणा भी की लोग यहाँ छठ मन सकते हैं, यानी की हमें क्या करना है क्या नही की स्वीकृति राज ठाकरे नमक जीव देगा।
मराठियों पर हमले की बात तो महारष्ट्र की स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस भी साबित नही कर सकता मगर राज मराठी पर हमले की दुहाई देते हैं। राज कहते हैं की मराठी का वो अपमान स्वीकार नही करेंगे, अप्रत्यक्षत: एक बार फ़िर सी धमकी भी, अरे भैये जहाँ राज के लोग तमाम उत्तर भारतियों की ही पिटाई कर रहे हों वहां मराठी का अपमान कौन कर रहा है?
राज ने राहुल राज की मौत को जायज ठहराया, ट्रेन में धर्मदेव को पीट पीट कर मौत देने वाले को राज की मने तो रक्षक की संगा दी। मगर उन मनसे आतंकियों के साथ ख़ुद के बारे में नही कहा की वो देश का सबसे बड़ा आतंकी है जिसने देश की अखण्डता पर ही सवाल उठाया है।
अंत में चलते चलते फ़िर से चेतावनी का ढोल बजाते गए।क्या महाराष्ट्र में देशमुख नामक जीव सिर्फ़ नाम का मुख्यमन्त्री है, अगर उससे प्रान्त की व्यवस्था नही सम्हाल रही तो क्योँ ना केन्द्र सरकार वहां राष्ट्रपति शासन लगा दे, मगर मनमोहन के गले की हड्डी बना महाराष्ट्र का कांग्रेसी सरकारजिसे ना निगलते बने ना उगलते, खामियाजा सिर्फ़ आम जन को और ये खामियाजा आम जन के मार्फ़त से होते हुए मनमोहन कैसे पहुँच जायेगा ये हमारे प्रधानमंत्री को पता नही। राज का जहर भले ही हमारे देश के लिए किसी भी आतंकी सी ज्यादा हो मदर हमारे सरकार, विपक्ष और इनके नुमाइंदे अपने धंधे की देहरी पर सिर्फ़ भाईचारा पर राजनीति करेंगे, आतंकी पर नही।
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महाराष्ट्र के डा. हेडगेवार देश की एकात्मकता के लिए काम करने वाले युगपुरुष थे। लेकिन उनके बारे मे शायद हीं कोई भी टीभी चैनल वाला सकरात्मक चीजे दिखाता है। आज दो हजार लोग सडक पर उतर कर भारतीयता के पक्ष और क्षेत्रवाद के विरोध मे नारे लगाए तो शायद हीं कोई भी टीभी चैनल वाला अपने प्राइम टाईम मे उसको प्रदर्शीत करेगा। लेकिन अगर कोई राज ठाकरे क्षेत्रवाद को बढावा देने वाली कोई भडकाउ बात करेगा तो टीभी चैनल वाले बार बार उसे दिखाएगे। फिर कोई नितीश, लालु या पासवान कुछ भडकाउ प्रतिकृया देगे तो फिर उसे भी उसी प्रकार बार बार दिखाया जाएगा।
आज देश की मिडीया मे विदेशी शक्तियो का बहुत बडा निवेश है। यह निवेश प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ से भी ज्यादा साम्राज्यवादी शक्तियो के हित पोषण के लिए किया गया है। विश्व मे भारत ही एक ऐसा विशाल भुखण्ड है जिसमे राष्ट्र बनने की सभी गुण विद्यमान हैं। विश्व शक्तियो के सामने भारत बडी चुनौती है। इस कारण शक्ति सम्पन्न राष्ट्र भारत मे क्षेत्रियता और भाषावाद को बढावा देना चाहते है। वह यह भी चाहते है की यहा हिन्दु और मुसल्मान आपस मे लडे। यही कारण है की मिडीया छद्म रुप से क्षेत्रियता और भाषावाद को बढावा देने वाली घटनाओ को ज्यादा से ज्यादा दिखाती है।
राज ठाकरे को महत्व न देना ही उसकी प्रवृती को नष्ट करने का सबसे बढिया तरिका है। अतः राज ठाकरे और उसकी बातो पर प्रतिकृया देने वालो की कम से कम चर्चा की जानी चाहिए।
एक बात और, बिहार मे कानुन व्यवस्था तथा विकास के काम बिल्कुल ठप्प हो गए है। मतदान और राजनिती का आधार विकास न हो कर जातिवाद रह गया है। रोजगारी का सृजन ठप्प पड चुका है। लोगो ने शासन के लिए गलत लोगो का चुनाव किया था तो यह सब भुगतना हीं था। आज बिहारी जनता को रोजगार के लिए महाराष्ट्र-पंजाब और असम जाना पड रहा है तो इसके लिए सबसे बडा दोषी कौन है। मै इस स्थिती के लिए राज ठाकरे को कतई दोषी नही मानता। इस स्थिती के लिए बिहार की जनता और यहा के नेता ही सबसे बडे दोषी है। क्षेत्रिय विकास असंतुलन की वजह से इतनी बडी जंनसंख्या का दुसरे राज्य मे बस जाना की वहां के लोग खुद को अल्पसंख्यक महसुस करने लगे, इस बात की कोई राज ठाकरे चिता करता है तो राष्ट्रियता के नाम पर उसकी बात को खारीज नही किया जाना चाहिए। इस बात पर बहस होनी चाहिए की बिहार विकास के दौड मे क्यो पीछे छुट गया है और इसका दोष दुसरे के सिर मढने से काम नही चलेगा। बिहार की जनता और बिहार के नेताओ को संकल्प लेना चाहिए की वे दुसरे राज्यो मे बोझ नही बनेगे बल्कि खुद बिहार को विकास के मार्ग पर आगे बढाएंगे।
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