मुर्गी का अंडे सेना,शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना

बचपन में एकबार रजुआ ठाकरे ने बलुआ ठाकरे से पूछा कि काका जी! ये सेना क्या होता है? बलुआ ने एक मुर्गी की तरफ हाथ दिखा कर कहा कि देखो बेटा रजुआ ये मुर्गी क्या कर रही है। रजुआ ने उत्तर दिया कि काकाजी ये मुर्गी अपने अंडों के ऊपर बैठी है। बलुआ काका ने बताया कि रजुआ बेटा इसी को सेना कहते हैं, मुर्गी अंडे से रही है। फिर जब बलुआ काका को परिस्थितियों ने कान पकड़ कर मुर्गा बनाया तो वे कुछ लैंगिक समस्या के चलते मुर्गा बन तो गये लेकिन हरकतें मुर्गियों जैसी करने लगे। उन्होंने भी हिंदुत्त्व के मुद्दों के अंडे दिये और "सेना" शुरू कर दिया। इस प्रकार एक सेना बन गयी। अब जब रजुआ बड़ा हुआ तो उसे भी कुछ तो सेना था तो उसने थोड़ा छोटा अंडा दिया और उसे सेना शुरू कर दिया। शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लोगों को सेना शब्द का अर्थ ही नहीं पता है। अरे मुर्गियॊं के चूजों! सेना उसे कहते हैं जो अभी मुंबई में आयी थी जिसे तुम लोगों ने जय महाराष्ट्र कह कर नहीं बल्कि जय हिंद कह कर धन्यवाद करा कि आपने हमारे शहर की रक्षा करी। बलुआ और रजुआ तो अपने बिलों में घुस कर मुद्दों के अंडे से रहे थे अपनी सेना वाली कला दिखा कर अब जब एक सप्ताह बीत जाएगा इस आतंकवादी घटना को उसके बाद फिर दोनो बलबलाने लगेंगे अपने अपने अंडे उछाल कर......
जय जय भड़ास

6 comments:

Khatri The King said...

hahaha..

jay maharashtra bolte hai...Noth indians ko bhagaate hai...
magar jab mari toh bachaane koun aaya ???
poora desh hi nah ???

ab jaya maharashtra chhodo aur jay hind bola karo !!

samjhe fojiyo?? !!!

Anonymous said...

बहुत सही लिखा

महेंद्र मिश्र.... said...

बहुत सही..

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

डॉक्टर साहब,
चूजे सेने वाले ये मुर्गे कुछ भी करें, देश के साथ साथ मराठियों को भी अब समझ में आ गया है की ये चाचा भतीजा की जुगलबंदी अपने निहित स्वार्थ के लिए उनका उपयोग भर कर रहे हैं.
देश की रक्षा के लिए देश का जवान हमेशा तैयार रहते हैं और रहेंगे, क्यौंकी ये जवान देश को हिस्से में नही बाटते अपितु पुरे भारत वर्ष को एक तिरंगे के अन्दर देखते हैं,

वैसे आपने सिर्फ़ मुर्गी और चूजे की बात करी, पत्रकारिता के छटे हुए मेमने पर कुछ नही लिखा जो मुर्गी और चूजों के सेना से लेकर हमारे देश के रक्षक तक को भुनाने में अपनी सारी ऊर्जा यूं लगाते हैं जैसे की युध्ध इहोने ही जीता हो और उस युद्ध का बाकायदा मैडल लेने लाला जी के पास पहुँच जाते हैं.

जय जय भड़ास

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

रजनीश भाई, पत्रकारिता तो बस ऐसा है कि ’गंदा है पर धंधा है ये....’वैसे भाईसाहब ने आज जरा मूड में आकर बलुआ और रजुआ की कसकर चम्पी करी है लिखते हैं कि मुर्गा है लेकिन मुर्गी वाले काम कर रहा है:)
जय जय भड़ास

पं.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

आपने पूर्णत: सही चित्रण् किया है, इन चाचा-भतीजों का

Post a Comment