मैं आ रहा हूँ

मैं आ रहा हूँ दोस्तों मुझे स्वीकार करो
मुझ बेचारे पर थोड़ा सा तो उपकार करो
मैं आ रहा हूँ दोस्तों मुझे स्वीकार करो
धूल से सना, पगडंडियों पर लड़खडाता
गवारों सा चिल्लाता, मैं चला आ रहा
मेरे इस हालत पे न शिकवा करो
मैं आ रहा हूँ दोस्तों मुझे स्वीकार करो
कब से वीरान, सुनसान सी गलियों में
धुप्प अंधेरे से बतियाता, गुनगुनाता हुआ
बढ़ता रहा, कोई तो मेरा हाँथ धरो
मैं आ रहा हूँ दोस्तों मुझे स्वीकार करो
मैं क्या किसी से मजाक करूँ मालिक
किरकिरी तो मेरी रोज ही हो जाती है
भूखा हूँ थोड़े प्यार का, इसे दान करो
मैं आ रहा हूँ , दोस्तों मुझे स्वीकार करो ..............

4 comments:

BrijmohanShrivastava said...

द्विवेदी जी बहुत भावुक रचना /मै शुक्रगुजार हूँ डॉ रूपेश जी का जिन्होंने मुझे यहाँ तक पहुचाया /

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाई हम सब आपका बांहे फैला कर स्वागत करते हैं आइये और हम सबमें घुस जाइये :)
बिरजू भइया आप भी घुस पड़िये अगर मन करे तो... इधर लोग हैं तो सभी अत्यंत भावुक,लल्लू लेकिन जब कहीं कोई अन्याय या अत्याचार देखते हैं तो सब एक जुट होकर फाड़ने में जुट जाते हैं.. आपने देखा न कैसे-कैसे भयंकर किस्म के अजब-गजब लोगों की जमात है जो दिन ब दिन एक जैसी सोच के लोगों को जोड़ रही है यहां पिलपिले लोग नहीं आयेंगे:)
जय जय भड़ास

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

भाईसाहब आपका पत्र पढ़ा, आपका दिल से स्वागत है। लिखिये और ऐसा लिखिये जिसमें धार हो,आग हो,दिशा देने की क्षमता हो.....
आशीर्वाद

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

मनोज भाई,

आ जाओ, जल्दी से आ जाओ और हम सब में समां जाओ,
अरे कब से हम सब इसी तैयारी में तो हैं आते जाओ और विचारधाराओं की क्रांती का सिर्फ़ सूत्रपात मत करो अपितु, क्रांति छेड़ दो , यहाँ सभी साथ हैं, और सभी के हाथ में सभी का हाथ है,

आपका ह्रदय से स्वागत है.

जय जय भड़ास

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