
रिहा होने के बाद डॉक्टर सेन ने कहा कि वे बाहर आकर बेहद ख़ुश हैं और कहा कि जेल के अंदर काफ़ी तनावपूर्ण समय गुज़ारा। जेल के बाहर उनके परिवार के लोग और समर्थक जमा थे। उनकी पत्नी ने ख़ुशी जताते हुए कहा कि आख़िरकर न्याय की जीत हुई है। डॉक्टर सेन ने कहा वो नक्सलियों का साथ नहीं देते लेकिन राज्य सरकार की ज़्यादतियों का भी विरोध करते रहे हैं।
डॉ बिनायक सेन छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि लेते रहे हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ में समाजसेवा की शुरुआत सुपरिचित श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ की और श्रमिकों के लिए बनाए गए शहीद अस्पताल में अपनी सेवाएँ देने लगे. वे छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों में लोगों के लिए सस्ती चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के उपाय तलाश करने के लिए काम करते रहे।
डॉ बिनायक सेन सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार करने के लिए बनी छत्तीसगढ़ सरकार की एक सलाहकार समिति के सदस्य रहे और उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि डॉ सेन के सुझावों के आधार पर सरकार ने ‘मितानिन’ नाम से एक कार्यक्रम शुरु किया।

सलवा जुड़ुम के चलते आदिवासियों को हो रही कथित परेशानियों को स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया तक पहुँचाने में भी उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने अक्सर सरकार के लिए असुविधाजनक सवाल खड़े किए और नक्सली आंदोलन के ख़िलाफ़ चल रहे सलमा जुड़ुम की विसंगतियों पर भी गंभीर सवाल उठाए।
सरकार ने 2005 में जब छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम लागू करने का फ़ैसला किया तो उसका मुखर विरोध करने वालों में डॉ बिनायक सेन भी थे। उन्होंने आशंका जताई थी कि इस क़ानून की आड़ में सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है और इसी क़ानून के तहत उन्हें 14 मई 2007 को गिरफ़्तार कर लिया गया।
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