बिहार चुनाव परिणाम :- बाहुबली हुए धराशायी.

नयी लोकसभा के लिए सरकार का गठन होना है, और बिहार की भागीदारी पर संशय, शायद कुछ कृपा दया केन्द्र की हो और कुछ सहभागिता मिले।

बिहार चुनाव परिणाम भले ही केन्द्र की राजनीति से अलग थलग हो गया हो मगर एक स्पष्ट बदलाव के साथ आया। बदलाव बिहार के लिए, बदलाव विकाश के लिए, बदलाव लोगों के लिए मगर सबसे बड़ा बदलाव बिहार के आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को नकारना रहा।

बाहुबली अपराधी राजनीति और बिहार का प्रारंभ से ही एक रिश्ता रहा है जिसने पुरे भारत में बिहार की राजनीति को कलंकित ही तो किया है मगर इस बार के चुनाव में चाहे राजग हो या युपीऐ, जयु हो या राजग, कांग्रेस हो या भाजपा कमोबेश सभी पार्टी से आपराधिक पृष्ठभूमि जुड़ी हुई थी और एक सिरे से जनता ने सभी को नकारा।

बिहार में इस बार के चुनाव में वैसे अधिकांश बाहुबलियों के चुनाव मैदान में उतरने पर वैधानिक बंदिश थी जिन्होंने कभी अपने बाहुबल के बूते चुनाव फतह किया था। बाहुबलियों ने इस बंदिश की काट में अपने परिजनों को मैदान में उतारा था पर मतदाता ने स्पष्ट रूप से उन्हें नकार दिया।

पूर्व सांसद पप्पू यादव यादव ने चुनाव में अपने मन की करने की खूब कोशिश की। कांग्रेस से उनकी पत्नी रंजीता रंजन को सुपौल से टिकट मिला और फिर अपनी मां को उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पूर्णिया से लड़ाया। पर कोसी के वोटरों ने सीधे-सीधे पप्पू यादव को नकार दिया।

आनंद मोहन के चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी लगी है। आनंद मोहन ने अपनी पत्नी लवली आनंद को शिवहर से कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतारा था। वहां भी वोटरों ने पर्दे के पीछे की राजनीति समझी और फिर अपने मन का किया। पूर्व सांसद सूरजभान की पत्नी वीणा सिंह नवादा से मैदान में थीं। वीणा सिंह के लिए सूरजभान काफी सशक्त तरीके से लगे थे पर वोटरों ने सूरजभान के इस खेल को नापसंद किया। नवादा में राजवल्लभ यादव और अखिलेश सरदार भी मैदान में थे। इनकी आपसी जंग में नवादा का बड़ा हिस्सा लंबी अवधि तक अशांत रहा है। मतदाता ने इन्हे सिरे से नकारा।

वैशाली से जदयू प्रत्याशी मुन्ना शुक्ला और महराजगंज से जदयू उम्मीदवार प्रभुनाथ सिंह को हार का मुंह देखना पड़ा। सिवान से पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब मैदान में थी। वोटरों को यहां हिना को भी नकार दिया। आरा में लोजपा प्रत्याशी रामा सिंह अपनी छवि के चलते ही नकार दिए गए।
जाकिर अनवर और तस्लीमुद्दीन को अपनी पुरानी छवि का खमियाजा भोगना पड़ा और हार का मुंह देखना पड़ा। जहानाबाद में राजद प्रत्याशी डा। सुरेंद्र यादव को लोगों ने नकार दिया।

ये एक आगाज है जागरूकता का, की बिहार की राजनीति एक सिरे से परिवर्तन की और अग्रसर है और अब जरुरत है जागरूक होने की और ना कार्य करने वाले प्रतिनिधियों को सिरे से खारिज करने की।

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3 comments:

dimple said...

sahi baat hai jarurat hai jagruk hone ki...or dekhiye ab voter samjhdar ho gya hai...woh akhir tak apni muthi band rakhta hai.....or ek baat apka blog khulne me boht der lgaata hai....

रंजनी कुमार झा (Ranjani Kumar Jha) said...

बहुत सही लिखा है,
बिहार में बदलाव दिख रहा है और बाहुबली की पराजय बताती है की बिहार में लोगों में जागरूकता बढ़ रही है.
साधुवाद

अग्नि बाण said...

बाहुबली की पराजय से सभी पार्टियों को सबक लेना चाहिए, लोगों का इनको नकारना साबित करता है की बिहार सक्षम लोकतंत्र की राह पर है.
बधाई

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