विगत दिनों एक बार फ़िर से डेरा सच्चा सौदा विवाद के साए में रहा, चिंगारी अभी भी सुलग रही है, और अलगाववादी ताकत जानते हैं की चिंगारी को हवा कब देनी है।
डेरा विवाद ने आम जनों के मन में एक बार फ़िर से डेरा के लिए नकारात्मन सोच को बढाया है, क्यूंकि उपद्रव का कारण डेरा का भजन कीर्तन रहा और हमारे देश में धर्म कर्म की प्रधानता होते हुए भी धार्मिक कट्टरपंथ सबसे ऊपर रहा है। चाहे वो राम मन्दिर विवाद हो या धर्म परिवर्तन का मामला, मठाधीशों ने हमेशा इस पर प्रश्नचिन्ह लगाया है क्यूंकि सर्व धर्म समभाव और आपसी भाई चारा इन मठाधीशों के लिए हमेशा से ही खतरा रहा है।
हिन्दुस्तान के संविधान के मुताबिक सर्वोपरी सर्वधर्म समभाव , वसुधैव कुटुम्बकम, अतिथि देवो भावः मगर क्या ये भाव हमारे धार्मिक मठाधीशों में है।
हाल के डबवाली का ही विवाद लें , जिस प्रकार से इसे आम जनों के बीच पडोसा गया यों लगा कि डेरा एक आतंकी संस्था है और इसके अनुयायी आतंकी हैं। जबकि इसके बारे में राय रखनेवाले लोग एक विशुद्ध भारतीय कि तरह बिना जाने अपनी राय रखना शानो शौकत समझते हैं। कुछ समय पूर्व तक मेरी भी कुछ इसी ही राय डेरा के बारे में हुआ करती थी। मगर ये चर्चा बाद में।
बहरहाल डबवाली काण्ड में जिसतरह पोलिस और प्रशासन आँख मूंद कर राजनीति के गलियारों के गुरूजी को खुश करते हुए ताम झाम के साथ मूक दर्शक बने रहे वहीँ सबसे ज्यादा कमाल तो हमारे मीडिया और मीडिया मित्रों का रहा। सनसनी और उत्तेजना के साथ बिकाऊ ख़बर बनाने के लिए आपको पत्रकारिता करनी बिल्कुल जरूरी नही है, ख़बर के तह तक जाने कि कोई जरुरत नही है, टेबल रिपोर्टिंग बैठ कर फोन घुमाया राय ली और लगा दी ख़बर, आख़िर इसी कारण तो दारु और मुर्गा फ्री होता है। मुझे नही लगता कि डेरा पर रिपोर्टिंग करने वाले किसी पत्रकार ने डेरा को समझने कि कोशिश कि है। नही तो लोग ख़बरों के साथ साथ विवाद के दोनों पक्ष से भी अवगत हुए रहते।
विशेष विवरण और डेरा फ़िर लिखूंगा।
डेरा विवाद ने आम जनों के मन में एक बार फ़िर से डेरा के लिए नकारात्मन सोच को बढाया है, क्यूंकि उपद्रव का कारण डेरा का भजन कीर्तन रहा और हमारे देश में धर्म कर्म की प्रधानता होते हुए भी धार्मिक कट्टरपंथ सबसे ऊपर रहा है। चाहे वो राम मन्दिर विवाद हो या धर्म परिवर्तन का मामला, मठाधीशों ने हमेशा इस पर प्रश्नचिन्ह लगाया है क्यूंकि सर्व धर्म समभाव और आपसी भाई चारा इन मठाधीशों के लिए हमेशा से ही खतरा रहा है।
हिन्दुस्तान के संविधान के मुताबिक सर्वोपरी सर्वधर्म समभाव , वसुधैव कुटुम्बकम, अतिथि देवो भावः मगर क्या ये भाव हमारे धार्मिक मठाधीशों में है।
हाल के डबवाली का ही विवाद लें , जिस प्रकार से इसे आम जनों के बीच पडोसा गया यों लगा कि डेरा एक आतंकी संस्था है और इसके अनुयायी आतंकी हैं। जबकि इसके बारे में राय रखनेवाले लोग एक विशुद्ध भारतीय कि तरह बिना जाने अपनी राय रखना शानो शौकत समझते हैं। कुछ समय पूर्व तक मेरी भी कुछ इसी ही राय डेरा के बारे में हुआ करती थी। मगर ये चर्चा बाद में।
बहरहाल डबवाली काण्ड में जिसतरह पोलिस और प्रशासन आँख मूंद कर राजनीति के गलियारों के गुरूजी को खुश करते हुए ताम झाम के साथ मूक दर्शक बने रहे वहीँ सबसे ज्यादा कमाल तो हमारे मीडिया और मीडिया मित्रों का रहा। सनसनी और उत्तेजना के साथ बिकाऊ ख़बर बनाने के लिए आपको पत्रकारिता करनी बिल्कुल जरूरी नही है, ख़बर के तह तक जाने कि कोई जरुरत नही है, टेबल रिपोर्टिंग बैठ कर फोन घुमाया राय ली और लगा दी ख़बर, आख़िर इसी कारण तो दारु और मुर्गा फ्री होता है। मुझे नही लगता कि डेरा पर रिपोर्टिंग करने वाले किसी पत्रकार ने डेरा को समझने कि कोशिश कि है। नही तो लोग ख़बरों के साथ साथ विवाद के दोनों पक्ष से भी अवगत हुए रहते।
विशेष विवरण और डेरा फ़िर लिखूंगा।
2 comments:
सही कहा पत्रकारिता में निरपेक्षता प्रथम गुण है। खैर ........ पूरे विवरण का इन्तजार है।
हर आग के पीछे कुछ ना कुछ धुआं जरुर होता है....सच है के लोगों के पास पुरी जान कारी नही है लेकिन ये भी सच है सर्व धर्म सद्भाव के नाम पर हथियार उठाकर अपने आप को सही साबित करना भी किसी भी तरह से न्यायसंगत नही है......डेरा की विचारधारा कुछ भी हो परन्तु उनका जवाब देने का तरीका किसी भी तरह से तर्कसंगत नही कहा जा सकता है...आखिरकार गुरु जी के अंगरक्षक बन्दूक चलाने से ज़रा भी नही हिचकते हैं.....आगे धर्म और अध्यात्म सही भले ही न लगे कम से कम नुक्सान तो नही ही पहुंचाता है....!!!!!! रंधीर झा....
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