मुम्बई हो या झुमरी तलैया प्रशसन और कार्यपालिका सब जगह एक जैसी ही। मैथिली में एक मुहावरा है कि "भोज काल में कुम्हर रोपु" और इसको चरितार्थ करते हैं हमारे ये प्रशसन जब बारिश का महिना आता है। अभी-अभी मोनसून का पदार्पन ओर मुम्बई (बी एम सी) कि सारी पोलपट्टी यौं खुली मानो छोटे बच्चे की पेंट का नाडा जब तब खुलता रहता है। इतिहास से सीख लेने की बजाय वापस अपने पुराने कार्य को दुहराते हुए बारिश से ठीक पहले सभी नाले की उगाही शुरु, अव्यवस्था का आलम ऐसा कि सीवर की खुदाई ओर सडक खुलना तब सुरु जबकि अगले दिन से मोनसुन का आगमन। वाह रे हमारे डपोरशंख ओर आपके डपोरशंखी दावे।
जब जब अन्य राज्य से तुलना करो तो खुद को हमेशा बेहतर ओर समर्थ बताने वाले निकम्मों कि पोलपट्टी खुल कर सामने। सडक पर जाम, गन्दगी का अम्बार और दावों कि पोल बहते हुए पानी के साथ समन्दर की ओर।
कुल मिलाकर हमारे देश के तन्त्र को चलाने वाले लोग एक ही नाडे से बन्धे हुए हैं। और लालफ़िताशाही के मंजे हुए खिलाडी हैं।
2 comments:
सही कहा आपने।
यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि यहाँ पर सब धान बाइस पसेरी जाते हैं।
हर आग के पीछे कुछ ना कुछ धुआं जरुर होता है....सच है के लोगों के पास पुरी जान कारी नही है लेकिन ये भी सच है सर्व धर्म सद्भाव के नाम पर हथियार उठाकर अपने आप को सही साबित करना भी किसी भी तरह से न्यायसंगत नही है......डेरा की विचारधारा कुछ भी हो परन्तु उनका जवाब देने का तरीका किसी भी तरह से तर्कसंगत नही कहा जा सकता है...आखिरकार गुरु जी के अंगरक्षक बन्दूक चलाने से ज़रा भी नही हिचकते हैं.....आगे धर्म और अध्यात्म सही भले ही न लगे कम से कम नुक्सान तो नही ही पहुंचाता है....!!!!!! Randheer Jha
Post a Comment