पत्रकार और उनका चरित्र ......... ?

मित्रों विशेषकर पत्रकार मित्रों माफ़ करना मगर क्या करूं भडास है सो निकाल रहा हू। किसी से मित्रता नही किसी से बैर नही मगर चेहरे से अनभिज्ञ भी नही। बात कर रहा हूँ पत्रकार की सो कसम भडास की सच ही कहूँगा क्यूंकि झूठे लोगों के बारे में सच कहने का बीड़ा मैने नही उठाया है मगर भडासी हूँ और भडास निकलना है। लिखने से पहले कह दूँ की आईने मैं मैंने अपनी तस्वीर पहले देखी है फ़िर लिख रहा हू। अभी मैं अपने कार्यवश मुम्बई में हूँ और पता नही कब तक मुम्बई में रुकना पड़े, नौकरी जो करनी है, सवाल पापी पेट का है। बीते कुछ पुराने दिनों की याद है कि जितने पत्रकारों की शकल देखता हूँ कुछ टीस सी उठती है की मैं कुछ नही कर पाया। मेरी एक मित्र हैं मैं नाम नही बताऊंगा जो की भारत के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचार पत्र की मुम्बई की वरिष्ठ संवाददाता हैं। पिछले साल की बात है वह एक संवाददाता सम्मेलन में गयीं थीं। उनके साथ और भी पत्रकार होंगे। वापस लौटते समय एक अन्य वरिष्ट संवाददाता ने उनसे आग्रह किया की चलिए मैं आपको रास्ते मैं छोडता आगे चला जाऊंगा। दोनों साथ चले , कमाल है मुम्बई की टैक्सी का भी, टैक्सी के चालकों को कोई सरोकार नही होता की पीछे बैठे सीट पर हो क्या रहा है। बहरहाल उन सज्जन ने मेरी मित्र के साथ टैक्सी में भारी दुर्व्यवहार किया जिसका जिक्र मैं यहाँ नही कर सकता। मुझे दूरभास पे सूचना दी , मैं ठहरा ठेठ बिहारी बड़े तैश में आ गया। अपने मित्र को सलाह भी दी की जाओ थाने में शिकायत दर्ज करो और उस बेहूदे ,कमीने रिपोर्टर को उसके ऑफिस में चांटा लगा के आओ। मगर वो ऐसा नही कर पायीं। और सब कुछ पूर्ववत् हो गया क्यूंकि हमारी मित्र उस कुत्सित घटना को भूल जाना चाहती थीं। आज मैं मुम्बई में हूँ, नोकरी ऐसी की इन महानुभावों के ही दर्शन होना होता है। बड़ी तकलीफ में हूँ क्यूंकि मुझे सारे पत्रकारों में उसी की शकल दिखती है। लगता है की काश उसने मुझे बता दिया होता तो ..... वैसे मेरे लिए ये इनका चरित्र कोई नया नहीं है क्योँ कि मैने देखा है कि अपने सहकर्मी के प्रति इनके दिल दिमाग मैं क्या क्या होता है, सामने से हटने की बाद उनके शरीर के व्याख्यान अभद्रता और कुन्ठित, शालीनता से परे मुझे हमेशा से ही उलझन मैं डालती रही कि क्या अपने आप को मित्र बताने वाला ऐसा हो सकता है, संभव है सभी जगह ये ही होता होगा मगर मुझे सदा से ही इस पत्रकार शब्द ने ज्यादा परेशान किया है. देश का चौथा स्तंभ..... आम जन कि आवाज..... जनता के लुटेरे को पकड़नेवाला.... भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखने वाले सर्वाधिक भ्रष्ट है ये बात ठाकुर जैसे पत्रकार के आने से जनता कि नजर मैं भले ही आती है मगर ना आये तो भी हैं तो सही।

चरित्रहीन.......................?
दयित्वहीन..............?
निष्ठाहीन..............?
कलंकित पत्रकार........

4 comments:

anuradha srivastav said...

सही फरमाया आपने.........लेकिन इन्हें अपने आचरण के प्रति जागरुक होना चाहिये।

Neha said...

The world is a balance of gud and bad..unless we know and realise the bad things happening around we would never know the value of gud..Thanks Rajnish for showing the true picture of life that inspires us to fight back rather than just falling prey of the evil

RD said...

Gud work done, patrakar mahoday,

Hamein fakhra hai, ki ham saath hain.

मीनाक्षी said...

चरित्रहीन.......................?
दयित्वहीन..............?
निष्ठाहीन..............?
कलंकित पत्रकार........
किसी पत्रकार में इन अवगुणों देख कर जो आक्रोश दिखाई दे रहा है ... उसी से साबित होता है कि समाज में आज भी चरित्रवान और निष्ठावान लोगों का महत्तव है....

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