लो क सं घ र्ष !: तृष्णा विराट आनंदित
तृष्णा विराट आनंदित,
है नील व्योम सी फैली।
मादक मोहक चिर संगिनी,
ज्यों तामस वृत्ति विषैली॥
वह जननि पाप पुञ्जों की,
फेनिल मणियों की माला ।
उन्मत भ्रमित औ चंचल,
पाकर अंचल की हाला॥
छवि मधुर करे उन्मादित ,
सम्हालूँगा कहता जाए।
तम के अनंत सागर में,
मन डूबा सा उतराए॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"
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