एक बात मैंने बड़ी गहराई से समझ ली है कि चाहे धार्मिक तथ्य हों अथवा साहित्यिक जब तक उन्हें खूब प्रचारित नहीं करा जाता वे धीरे-धीरे समय के साथ लुप्त हो जाते हैं। अमरीका पूरे दुनिया की छाती पर चढ़ कर मूंग दल रहा है ये बात सब जानते हैं। अमरीका की दवा कंपनिया जो कि वायग्रा,कामोत्तेजक औषधियां,कंडोम आदि बनाती हैं सारे विश्व में अपना इतना प्रचार करती हैं कि आम आदमी तो इससे पगला ही जाए। रही बात भड़ास की तो जब से भड़ास पर बिना सदस्यता लिये ही ई-मेल के द्वारा पोस्ट भेजने की लोकतांत्रिक सुविधा उपलब्ध करायी गयी है तब से रोजाना ही इस ठरकीछाप दवा कंपनियों के दो सौ से तीन सौ तक प्रचार आधारित लम्बे-लम्बे पोस्ट आते हैं। इन चूतियों को क्यों ऐसा लगता है कि हम उन्हें पढ़ते या देखते भी हैं। अरे गधे हैं.... जब भारतीयों ने अपनी प्राचीन सभ्यता से जुड़ी धरोहरों और साहित्य को देखना गवारा न करा तो क्या लिंग का आकार बढ़ाने से लेकर स्तन बढ़ाने की तुम्हारी चिरकुटही दवाओं पर हम ध्यान देंगे? गोरे अमरीकी वायग्रा और चपटे चीनी जिनसेंग बेचने के लिये मरे जा रहे हैं। अरे बेवकूफ़ों जब हमें हमारे देश में आयुर्वेद की चमत्कारी वनस्पति अश्वगंधा नहीं दिखती तो क्या हम तुम्हारी चीज़ देखेंगे। तुम ऐसा क्यों समझते हो कि भारतीय मूर्ख होते हैं(अब ये नहीं कहूंगा कि मूर्ख नहीं बल्कि महामूर्ख होते हैं)
जय जय भड़ास
4 comments:
डा.साहब जब लोग अपनी धरोहर को सम्हाल नहीं पाते तो ऐसा ही होता है कि दूसरे अपनी गदही का गोबर भी मेंहदी बता कर भारत में बेंच जाते हैं ये उनके प्रचार माध्यमों की ताकत है और हम भारतीयों की कमअक्ली जो अपनी जड़ों की तरफ़ नहीं देखते हैं
जय जय भड़ास
इन चूतियों को क्यों ऐसा लगता है कि हम उन्हें पढ़ते या देखते भी हैं। अरे गधे हैं.nice
AB ANKHEN KHULANI CHAHIYE..JAI JAI BHADAS
डॉक्टर साहब आदाब,
कैसी बातें कर रहें है आप अरे जब हम कबाड़ में बारूद से भरे गोले और बम खरीद सकते हैं तो इसको खरीदने में क्या है और वैसे भी हम घर की मुर्गी साग बराबर और इन दवाओं का प्रचार का तरीका भी तो ऐसा है की सेंसर बोर्ड वालों के आंख में जूं तक नहीं रेंगती और बहोत से चूतिये यहाँ भी हैं नहीं तो कहे ये अपना कबाड़ बेचने भारत में आते,
आपका हमवतन भाई ..गुफरान..अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद,
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