धर्म के नाम पर वसूली !!!

सुबह का समय नहाकर तैयार हो रहा था ऑफिस की जल्दी थी, की अचानक कालबेल बजी आधे अधूरे कपड़े में गेट खोला तो सामने कुछ भगवा वस्त्र में महिला थी।

दरवाजा खोलते ही महिलायें शुरू हो गयी की हम हरिद्वार से आयें हैं, हरि के सादना उपासना पूजा के लिए आप दान दीजिये आपका लोक परलोक सुधर जाएगा और पता नही क्या क्या, ह्रदय से मैं घोर आस्तिक हूँ मगरईश्वरीय दिखावेपन से कोसो दूर नास्तिक बनना पसंद करता हूँ ।

इन महिलाओं का ढीठपन देखिये की दान भी स्वेक्षा से नही अपितु इनके मुताबिक ही इन्हें चाहिए।
मैं इस तरह के दान भीख चंदे में विश्वास नही रखता मगर मेरा सहकर्मी ने एक दस का नोट इन्हे पकडाया और चलता किया।


ऑफिस के रास्ते में था तो एक मन्दिर के प्रांगन में इन महिलाओं का झुंड भोजन कर सुस्ता रही थी, स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि ये लोग यहीं पास में रहती हैं और सालोभर बस हरिद्वार के नाम पर घर घर चंदा वसूलती हैं।

सोचता रहा कि यहाँ तो क्या ये धार्मिक वस्त्र और जबरन माँगना यहाँ तो क्या पुरे देश में होता है और धार्मिक अंध भक्ति कि किसी मजबूर बेसहारा लाचार या जरूरतमंद को लोग कुछ भी देने से दुत्कारते हैं मगर जब धर्म का नाम आता है तो अपनी अपनी श्रद्धा ( दिखावे की ) के लिए पता नही क्या क्या दान कर देते हैं।

मानव के मानवता के प्रति क्षद्म रूप का अपने आप से अंतर्द्वंद जारी है।

8 comments:

S C Mudgal said...

Dear Rajneesh Jha,

Aapko Char paise dene ki naubat aayee to aapko gareebon ki kamayee ke saadhan ki apavitrata dikh gayee. Kya aapne dekha hai apni website ko ki vo kaunsee pavitrata badha rahi hai.

Aap ke lekh ke Sabse Neeche dikhaya gaya Advertizement neeche diya hua hai. Padh lenaa tatha manthan kar lena ki ek gareeb ki kamayee ke sadhno ki hansi udana kahan tak theek hai.

Meri sauch se aapse behtar to vo mahilayein hi hain jo apne ko saadhu ka vesh dharan kar bhikhari to present kar rahi hain. Magar Aap Jaane mein aur Anjaane mein kya phaila rahein hai sanskriti ke naam per. Shayad aapko yehi sanskriti nazar aati hai. Is liye jab aapke saamne koi aur sanskriti kee baat karta hai to Aap sanskriti ke baare mein itnaa he sauch paatein hain.
Satish Mudgal

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Jagdish Verma said...

Dear Rajneesh ji,
Geruye vastra ki mahilao ke bare me to apne pura article he likh diya. vese un logo ke bare me apka kya khayal he jo rikse par loudspeakar lagakar aur lamba sa chadar faila kar maga karte, apki najar me sayad unse bada dharmic, imandar aur pavitra to sayad hi koi ho. kya khayal hai apka 2 line bhi aap likhde to bahut hoga.
"Hame to apno ne luta, Gairo me kaha dam tha !
Hamari kashti hai waha dubi, jaha pani kam tha !!

Vivek Rastogi said...

are in logo se nipatna bahut mushkil hai

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

मित्र मुद्गल जी,
लेख विशेष किसी धर्म विशेष पर नहीं है हाँ तस्वीरों को देख कर आपने अपने हिसाब से जो भी समझा ये आपकी सोच है, रही बात पैसे देने की तो आप जरूर जानते होंगे की भारतीय कानून के हिसाब से भीख माँगना और देना दोनों अपराध है. रही बात देने की तो मैंने सिर्फ किसी संवेदना की आड़ में मांगने के बजाय मजलूमों के मदद की बात की है, इन मांगने वालों को कभी आपने कहा है की काम करो या फ्फिर मैं काम दिलवाने में सहयोग करता हूँ जरा इनकी प्रतिक्रया देखिये....
रही बात नीचे के शब्दों पर तो अगर आपको इस पर ऐतराज है तो फिर हमारे खजुराहो और अजन्ता की सभ्यता पर भी ऐतराज होगा, पता नहीं हम इतने क्षद्म क्यूँ हो जाते हैं की जिस पर गर्व करते हैं उसी पर शर्मिन्दा भी होते हैं, श्याद ये ही वजह रही की हमारी समृद्धि को फिरंगियों ने कैश किया और हम फटेहाल रहे.
मित्र जगदीश जी,
हमें किसी वस्त्र पर टीका टिप्पणी नहीं की है, बस एक आइना दिखाया है जिसमें कोई भी रंग हो शामिल है और इस संस्कृति पर अपने मनोभाव दिखाए हैं, आपने सही कहा रिक्शे पर घूमते लोगों का मांगना एक प्रसंग है मगर मैं उस से भी सहमत नहीं हूँ और इस निकम्मे प्रथा को बढ़ावा देने वालों के प्रति अपना विरोध जता रहा हूँ. सामजिक कुरित्यों के विरोध में हमें ही तो खडा होना होगा और सभी को मिल कर खडा होना होगा जो धर्म से परे राष्ट्र के हित में हो.

रंजनी कुमार झा (Ranjani Kumar Jha) said...

बहुत खूब, सही आइना दिखाया है भाई, सही कहा धर्म के नाम पर मांगो तो सौ देने वाले आ जाते हैं मगर मजलूमों की कोई नहीं सुनता ये तो खासियत रही है इस देश की जिसने निकम्मेंपण को बढावा दिया है.
बढ़िया लेख
बधाई

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

सभी साथी का प्रतिक्रया के लिए आभार

अग्नि बाण said...

बड़े भैया,
ई धर्म ने ही तो हमारे समाज का कबाडा कर दिया है, नहीं तो हिन्दुसाती से टकराने की हिमात कौन करता.
और लोग अपने अपने धर्मं का रोना गाते रहते हैंकभी गरीबों को किसी ने पांच पैसे ना दिए होंगे, कोई भूखा रोटी मांगे तो उसे लात लगाने से ये ही धर्म के ठेकेदार माना ना करे,
बढ़िया लिखा

Priyanka Telang said...

बहुत ही सटीक लेख है ....जो आजकल के अंधविश्वासों और हमारे धर्म के नाम पर काम चोरी कर रहे लोगों की और ध्यान केर्न्द्रित करता है
और अफ़सोस की बात यह है की यह बहुत व्यापक रूप मैं फैला हुआ है चाहे वोह शनि के नाम पे डिब्बे मैं तेल ई निकल जानवाले नवयुवक लड़के हों या
मंदिर के आगे भीख मांगते छोटे बच्चे ....

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